बौद्ध धर्म और बाबा साहब

बौद्ध धर्म और बाबा साहब

बौद्ध धर्म और बाबा साहब का बौद्ध धर्म के बारे में मत था की बुद्ध धर्म यानी निति है।  अन्य देवी देवताओ की तरह बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध यह नहीं कहते की में एक मोक्षदाता है।  वह कहते है की में समाज का एक पथदर्शक हूँ।  यह बात काफी हद तक सही भी है।  बुद्ध का मार्गदर्शन यानी सभी उपदेश यथार्तवाद है। 

उनकी तुलना में कृष्ण की गीता ईसा मसीह बाइबल और पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब का उपदेश वैज्ञानिक दृष्टि से काम तथा और काल्पनिक अधिक है।  उनके कल्पनाओ की भरमार है।  बौद्ध धर्म में ईश्वर की जगह निति ने ली है।  उसमे ईश्वर कही भी नहीं है।  बौद्ध धर्म में बुद्धि, विवेक, ज्ञान , और निति निहित है।  जबकि श्रीकृष्ण स्वय को देवो का देव बताते है। 

ईसा स्वंय को देव पुत्र कहते है।  पैगम्बर साहब ने  खुद को खुदा का दूत बताया है।  गीता कर्म पर जोर देती है और  विनयपिटक निति पर।  क्योकि कर्म अच्छा और बुरा छोटा और बड़ा हो सकता है लेकिन निति तो निति है।  वह सबको एक सा ज्ञान देती है।  बुद्ध धर्म ने कर्म के बदले निति को अपनाया।  उनका धर्म समता है मूलक है। 

बाबा साहब ने सन १९६० में महाबोध संस्था की मासिक पत्रिका में बुद्ध और उनके धर्म का भविष्य विषय पर अपना एक महत्वपूर्ण लेख लिख।  उसमे उन्होंने लिखा की समाज का स्थिरता के लिए कानून और निति का आधार जरुरी है। 

इनमे में किसी एक के अभाव में समाज तीतर बितर हो जाएगा।  धर्म के अस्तित्व के लिए बुद्धि का प्रमाणिक होना आवश्यक है।  यही विज्ञान का दूसरा नाम है।  बाबा साहब के विचार से बौद्ध धर्म सभी अपेक्षाओं पर खरा उतरता है। 

यह एक ऐसा धर्म है जिसे पूरा विश्व स्वीकार कर सकता है।  ५ मई , १९५० को बम्बई पहुंचते ही उनके पत्र जनता के प्रतिनिधि ने जब उनसे पुछा की क्या आपने बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया है तब वह बोले – मेरे मन का झुकाव उसकी और अवश्य हुआ है।  बौद्ध धर्म के तत्त्व स्थाई और समता पर आधारित है।  उस समय जनता के संपादक कोई और नहीं बल्कि उनके पुत्र यशवंतराओ अम्बेडकर ही थे। 

बाबा साहब ने उन्हें एकदम साफ़ बताया की अभी उन्होंने न तो बौद्ध धर्म स्वीकार किया है और न ही अपने अनुयायी को वह धर्म स्वीकार का आदेश दिया है। 

१९ मई , १९५० को बाबा साहब औरंगाबाद में शीघ्र ही शुरू किये जाने वाले अपने महाविद्यालयों के कुछ जरुरी काम से हैदराबाद गए।  वहा उन्होंने बताया की श्रीलंका के यौंगमेंस बुद्धिष्ट एसोसिएशन ‘ ने उन्हें कोलंबो में होने वाली धर्म परिषद् में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया है। 

डॉक्टर श्रीमती अम्बेडकर और दलित पार्टी के कार्यवाहक पांडुरंगा राव राजभोज के साथ बाबा साहब २५ मई १९५० को हवाई जहाज से कोलंबो चले गए।  वह उन्होंने पत्रकारों से कहा हम यहाँ देखने आये है की बोध धर्म के संस्कार और विधि विधान कैसे है और बोध धर्म के यहाँ कहा तक जीवित है ?

हालंकि बहा साहब ने वह केन्डी में आयोजित बोध धर्म समेलन में अपना भाषण देने से इंकार कर दिया था कोलंबो के सम्मेलन में उन्होंने बोध धर्म का विकास और विनाश , विषय पर अपना व्यख्यान देते हुए कहा की –  यह बिलकुल गलत है की हिंदुस्तान से बौद्ध विनष्ट हो चूका है।  में यह मानता हु की यह आज भी ज़िंदा है।  हिन्दू धर्म तीन पांडवो से गुजरा है वैदिक , ब्राह्मण  और हिन्दू धर्म। 

हिन्दू धर्म का जब दूसरा पड़ाव चल रहा था तभी बौद्ध धर्म ने समानता की सिख दी।  यह कहना सच नहीं की शंकरचर्या के उदय से बौद्ध धर्म भारत से मिट गया क्युकी शंकरचर्या और उनकी गुरु दोनों ही बौद्ध धर्म के थे।  वैष्णव और शेव संप्रदाय के लोगो ने बौद्ध धर्म के कुछ अचार और विचार और रीती रिवाजो को स्वीकार कर लिया। 

अल्लाहउद्दीन खिलजी के भारत जे आक्रमण के समय बिहार में हजारो बौद्ध भिक्षुओ का क़त्ल हुआ इसलिए कुछ भिक्षुक अपनी जान बचाने के लिए तिब्बत , चीन और नेपाल चले गए।  बौद्ध धर्म के अनगिनत मतानुयाइयों ने हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया। 

बौद्ध धर्म के बारे में हिन्दू विद्धवानो , विचारको और विदेशी विद्धवानो के मतों से बाबा साहब हरगिज सहमत न थे ।  बौद्ध धर्म का प्रसार सारे विश्व में हुआ मगर प्रदेशो में उसका कोई केंद्र न बचा।  उसने भारत के सभी देवी देवताओ और देवतुल्य पुरषो के देवत्व को मानने से इन्कार किया । 

उसने सबसे बड़े देवत्व के रूप में गौतम बुध का जयघोष किया।  हीन मानी गयी जिस विभूति पूजा के खिलाफ बौद्ध धर्म ने विद्रोह किया उसी को स्वीकार करके बोद्धो ने गौतम बुध के दांत , केश और भस्म जैसे अवशेषों की शोभा यात्राएं निकालकर उसका बदला लिया। 

लोग जब ताज यह मानते रहे की बौद्ध धर्म , समाज में सुधार लाने का एक आंदोलन है तब तक उसकी उन्नति हुई और जब वह बहुजनो के राष्ट्रीय वैदिक धर्म के खिलाफ खुलकर कार्य करने लगा तो उनके प्रति भारतीयों की सहानुभूति खत्म हो गयी। 

वैदिक धर्म के हिन्दू मुसलमान आतताइयों के खिलाफ वीरता से लड़ते रहे लेकिन वे देश छोड़कर अपने प्राण बचाने के लिए कही भागे नहीं मगर बौद्ध धर्म के लोग अपने प्राण बचाकर विदेशो में भाग गए।  दूसरी बात जब जब मुस्लिमो ने भारत पर हमला किया तब तब बोद्धो ने घंटा बजाकर उनका स्वागत किया। 

कोलंबो के नगर सभागृह में अपना यह भाषण देने के बाद की अस्पृश्य बौद्ध धर्म स्वीकार करे और इसे समाज को अलग संघटक के रूप में रखने की कोई जरुरत नहीं।  माँ बाप की तरह उन्हें आस्था के साथ अपने धर्म में स्वीकार किया जाए।  तत्पश्चात बाबा साहब भारत के लिए रवाना हो गए। 

२९ सितम्बर १९५० को वर्ली बम्बई के बौद्ध मंदिर में उन्होंने अपने एक व्याख्य्न में कहा की अस्पृश्य लोग अपना कष्ट दूर करने के लिए बौद्ध धर्म स्वीकार करे क्युकी एक हज़ार साल पहले प्रचलित हिन्दू धर्म , बौद्ध धर्म की भाति ही था।  मुसलमानी हमलो और कुछ अन्य कारणों से उसकी पवित्रता नष्ट हो गई।  में अपना शेष जीवन बौद्ध धर्म पुनरुथान और प्रसार के लिए व्यतीत करुगा।