वह व्यक्ति जो कभी गुलाम नहीं बना और उसके विचार

भगत सिंह के विचार सामाजिक क्रांति के प्रति किस प्रकार के थे।

भगत सिंह और उसके विचार बहुत ही भिन्न प्रकार के थे, जो आज की पीढ़ी के लोगों के भीतर बहुत ही कम देखने को मिलते हैं। भगत सिंह ने अपने पूरे जीवन में बचपन से लेकर अपने अंतिम क्षण तक उन्होंने किसी की भी गुलामी नहीं की, अब चाहे वह कोई राजनेता हो या ब्रिटिश सरकार। ब्रिटिश सरकार की ओर से भगत सिंह तथा राजगुरु और सुखदेव को भिन्न भिन्न प्रकार जेल के अंदर प्रताड़ित किया जाता था, परंतु तीनों के दिलों में कभी यहां भावना नहीं आई कि हम अपनी जान की भीख मांगे अंग्रेजी हुकूमत से।

जलियांवाला बाग हत्याकांड से आक्रोश होकर भगत सिंह, मृतकों की मिट्टी एक छोटे से कांच के डब्बे में उठा लाए थे। और अपने कमरे के भीतर शपथ ली थी कि ‘मैं कभी अंग्रेजी हुकूमत की गुलामी नहीं करूंगा’ और मेरे भारत के लोगों के साथ जो अत्याचार अंग्रेजी हुकूमत ने किए हैं उनका मैं पूर्ण हिसाब ब्रिटिश सरकार से लेकर रहूंगा। 

जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद भगत सिंह ने निरंतर ही अंग्रेजी सरकार को घेरना चालू कर दिया तरह-तरह के आंदोलन किए साथ ही लोगों को जागरूक किया कि अब हमें अपनी आजादी के लिए अंग्रेजी हुकूमत से लड़ाई करके ही अपना स्वराज हासिल करना होगा। बाल गंगाधर तिलक और भगत सिंह के विचार थोड़े मिलते जुलते दिखाई पड़ते थे दोनों ही अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन किया करते थे।

बाल गंगाधर तिलक और भगत सिंह के विचार कैसे एक थे।

बाल गंगाधर तिलक और भगत सिंह के अंदर समानता इस प्रकार से थी कि दोनों ही अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करना चाहते थे, और हिंदुस्तान को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी बुलाकर स्वराज प्राप्त कर आना चाहते थे।

बाल गंगाधर तिलक ने भी अपने जीवन के भीतर अंग्रेजों से अन्य प्रकार के संघर्ष किए, उन्होंने एक स्कूल की स्थापना की जिसके भीतर भारत वासियों को यहां सिखाया जाता था कि जो फिजूल की अफवाहें अंग्रेजी हुकूमत ने हिंदुस्तानियों के दिमाग में डाली हुई है वह एकदम बकवास है और अंग्रेजी हुकूमत का षड्यंत्र है , हिंदुस्तानियों को जीवन भर के लिए गुलाम बनाने की।

ऐसी कौन सी बात थी जो अंग्रेजों ने बाल गंगाधर तिलक के काल में हिंदुस्तानियों के मन में डाली थी।

बाल गंगाधर तिलक संघर्ष तो हजारों की अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध, लेकिन उन्हें काफी समय लग गया हिंदुस्तानियों को वास्तविकता से परिचित कराने के लिए। उसके पीछे यहां कारण था कि तिलक का स्वास्थ्य निरंतर ही बिगड़ता जा रहा था उन दिनों जिसके कारण बाल गंगाधर तिलक अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सही प्रकार से अपनी आवाज बुलंद नहीं कर पा रहे थे।

ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखने वाले तिलक मैं अपने जीवन में इतने बदलाव ला दिए के उनके मित्र उन्हें देखकर दंग रह गए तिलक ने 1 साल के भीतर ही योग तथा कसरत के द्वारा अपनी खांसी और अपना स्वास्थ पूरी तरह से स्वस्थ कर लिया।

अपना स्वास्थ सही होने के पश्चात तिलक ने अपने मित्रों के साथ शपथ ली के, अंग्रेजों द्वारा फैलाई गई झूठी अफवाहों को हिंदुस्तानियों के दिल और दिमाग में से सदैव के लिए निकाल कर फेंक देना है। और हिंदुस्तानियों को स्वराज और हिंदुस्तान की पूर्ण आजादी के प्रति जागरूक करना है। अंग्रेजों द्वारा फैलाई गई वह यहां थी कि,  कि अंग्रेजी हुकूमत जो भारतवासियों के ऊपर आकर बैठी हुई है।

अंग्रेजी हुकूमत कोई वर्चस्व या तानाशाही नहीं है,बल्कि भगवान की देन है हिंदुस्तानियों के लिए। अंग्रेजों की इस अनैतिक अफवाहों का शिकार लाखों हिंदुस्तानी कई वर्षों से होते आ रहे थे। जिसके चलते वह पूरी तरह गुलाम बन चुके थे तथा उन्हें आजादी की कोई आवश्यकता नहीं थी उनके भीतर कोई जागरूकता और आक्रोश विचारधारा अब नहीं बची थी, तथा उन्हें गुलामी की आदत पड़ चुकी थी। 

भगत सिंह के विचार।

भगत सिंह के विचार मार्क्सवादी तथा रूसी वादी साम्यवाद से कुछ अत्यधिक ही प्रभावित थे। भगत सिंह क्रांति को ही सबसे बड़ी विचारधारा के रूप में प्रकट करते थे और उनका मानना था कि क्रांति के भीतर हिंसा की कोई भी जगह नहीं है।  क्रांति न्याय के आधार पर एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था होती है जिसके द्वारा हम अपने समाज के भीतर बदलाव ला सकते हैं।

भगत सिंह नास्तिक होने के साथ-साथ एक समाज सुधारक भी थे।

समाज में फैली विषमताओं और जातिवाद को भगत सिंह , हिंदुस्तान के लिए दुर्भाग्यपूर्ण मांगते थे। उनका मानना था कि जिस समाज में अनेक प्रकार के धर्म के लोग पलायन करते हैं तथा अपना जीवन व्यतीत करते हैं उस समाज के अंदर किसी भी प्रकार का जातिवाद तथा भेदभाव अनैतिक है।

भगत सिंह के अनुसार असमानता तथा विषमताओं को समाज से उखाड़ कर फेंक देना चाहिए तथा संसाधनों को सभी को चाहे वह मजदूर हो या किसान उन्हें एक समान अधिकार ही प्राप्त होने चाहिए। भगत सिंह का विश्वास था कि शोषक समाज के तहत विश्व शांति की बात करना अकल्पनीय तथा पाखंड पूर्ण है वह स्वतंत्रता की भांति क्रांति को भी लोगों का जन्मसिद्ध अधिकार मानते थे।

सिंह के विचार हिंसा के प्रति।

भगत सिंह ने अपने पूरे जीवन काल में हिंसा का समर्थन कभी नहीं किया उनका मानना था कि अगर आप किसी चीज के प्रति आंदोलन करते हैं या क्रांति की शुरुआत करते हैं तो उसके भीतर हिंसा को बिल्कुल भी ध्यान नहीं देना चाहिए। लेकिन दूसरी ओर भगत सिंह चाहते थे कि हिंसक क्रांति से एक ऐसे समाज का निर्माण होना चाहिए जहां हिंसक समाप्त कर दी जाए और, और समाज का इस प्रकार से पुनर्निर्माण होना चाहिए जहां पर धर्मनिरपेक्षता और व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा प्रदान की जाए।

भगत सिंह के विचार अपराधी के प्रति।

अपराध तथा दंड जैसे मामलों पर भी विचार प्रकट करते हुए भगत सिंह ने लिखा कि अपराधी को दंड उसका पुनर्वास करने के विचार से ही दिया जाना चाहिए, उनके अनुसार जेलों के भीतर सुधार ग्रह होने चाहिए जिनके द्वारा व्यक्ति को सुधारने का मौका दिया जाना चाहिए ना कि उनकी जिंदगी नर्क बनानी चाहिए।

भगत सिंह मानते थे कि युद्ध शोषण के आधार पर चलने वाले समाज की विशेषता है। समाजवादी समाज में युद्ध की संभावना को नकारा नहीं जा सकता क्योंकि यह पूंजीवादी समाज से उसकी रक्षा के लिए आवश्यक होगा तथा क्रांतिकारी युद्ध की समाजवादी व्यवस्था के निर्माण के लिए भी अति आवश्यक होगा। भगत सिंह का मत था कि सत्ता हथियाने के बाद शांतिपूर्ण तरीकों का प्रयोग रचनात्मक कार्यों के लिए किया जाना चाहिए लेकिन रुकावट को रोकने के लिए ताकत का प्रयोग अति आवश्यक है।