हिन्दू धर्म के खात्मे पर ज्योतिबा फूले के विचार

हिंदू धर्म वास्तव में ही जीने लायक था या नहीं ज्योतिबा फुले के विचार सुनिए।

ज्योतिबा फूले एक बहुत ही सरल तथा सुलझे हुए इंसान थे ईश्वर को ही उन्होंने इस समाज तथा ब्रम्हांड का निर्माता माना और पृथ्वी पर सभी जीव जंतु नर नारियों तथा सभी को उन्होंने ईश्वर की ही संतान माना. ज्योतिबा फूले जितने सरल इंसान थे उतने ही वह ज्ञानी भी थे उन्होंने सदैव मूर्ति पूजा तपस्या भाग्यवान तथा अवतारवाद को हमेशा ही अपने विचारों से उनका खंडन किया.  उन्होंने भगवान तथा उपासक के बीच कोई मध्यस्थता आवश्यक नहीं मानी, जो भी पुस्तकें ईश्वर को विस्तारित तथा सुलझाने का दावा करती थी ज्योतिबा फूले ने उनका हमेशा ही तिरस्कार किया उनका मानना था कि ईश्वर को हम किसी पुस्तक,मूर्ति,पूजा तपस्या,इन सब क्रिया कर्मों के द्वारा ईश्वर को नहीं समझा जा सकता.

एमजी रानाडे और ज्योतिबा फुले के विचार

ज्योतिबा फुले का जो हिंदू धर्म के प्रति तथा नजरिया था वह बिल्कुल एमजी रानाडे के विचारों तथा विचारधारा से संबंध रखता था, लेकिन बहुत सी जगह उन दोनों के विचार अलग-अलग भी परंपराओं में वर्ग तो करते थे और उनसे अलग होने के बाद उन्होंने अपने मन में कभी नहीं बनाई. सुधारवादी कार्यकर्ताओं को वह संत विद्रोह तथा इतिहास में हुए उन जैसे प्रयासों की ही निरंतरता में देखते थे तथा फूले हिंदू धर्म को हमेशा सत्यशोधक समाज के एक विकल्प में देखा करते थे उनकी धारणाओं से एक सच्चा हिंदू धर्म परंपराओं से बिल्कुल ही अलग हुआ करता था.

हिंदू धर्म और ज्योतिबा फूले की विचारधारा

ज्योतिबा हमेशा ही हिंदू धर्म को एक अलग नजरिए से देखा करते थे तथा हिंदू धर्म को सबसे पवित्र बताया करते थे लेकिन उसके साथ साथ ज्योतिबा हिंदू धर्म के अंतर्गत मित्र को तथा पवित्र ग्रंथों मनुस्मृति और जो वेद ब्राह्मणों द्वारा विस्थापित किए गए थे ज्योतिबा उनका पूरी तरह खंडन करते थे और इनकी आलोचना भी करते थे

ज्योतिबा फूले सदैव ब्राह्मणवाद विचारधारा के खिलाफ थे तथा वह साबित भी करना चाहते थे कि ब्राह्मणवाद विचारधारा हिंदू धर्म को एक अलग किसम का नजरिया देती है उनका मानना था कि अगर ब्राह्मणवाद को हिंदू धर्म से अलग कर दिया जाए तो हिंदू धर्म से शुद्ध पवित्र सुंदर धर्म और किसी संसार में नहीं पाया जाता

ज्योतिबा फूले ब्राह्मणवाद के खिलाफ नहीं थे लेकिन वह उनकी आलोचना इसलिए किया करते थे क्योंकि हिंदू धर्म के अंदर दशकों से ब्राह्मणवाद को सम्मिलित करके हिंदू धर्म को बिल्कुल विलुप्त कर दिया गया था जिसकी वजह से ब्राह्मण वादों की विचारधारा हिंदू धर्म में सम्मिलित करके हिंदू धर्म को पेश किया गया तथा ब्राह्मणवाद होने के कारण ही वर्ग भेद जातिवाद सूत्र तथा इस प्रकार की समस्याएं भारतवर्ष में पैदा होती चली गई, ऐसा नहीं था कि ज्योतिबा फुले ब्राह्मण समाज के खिलाफ थे लेकिन वह उनकी आलोचना तो करते थे पर उनके अनुसार उनका मानना था कि जो ब्राह्मणवाद की विचारधाराएं सदियों से चली आ रही हैं उनको अब त्याग कर एक नई रहा पर चला जाए जो समाज को विकास की ओर अग्रसर करेंगी तथा लोगों की जीवन शैली को बेहतर बनाएंगे

फूले ने सदैव यह सिद्ध करने का प्रयास किया की हिंदू धर्म का इतिहास वास्तव में ब्राह्मणवाद वर्चस्व एवं सूत्र दासता का इतिहास है तथाकथित पवित्र पौधों में वह सच्ची धर्म चर्चा के बजाय कुटिलता शुद्धता और छद्म ही देखते थे।

अभिजात सुधारको और ज्योतिबा फूले

अभिजात सुधारकों ने सदैव हिंदू धर्म के समकालीन स्वरूप की ही आलोचना की लेकिन ज्योतिबा फुले ने उसके मूल पर प्रहार किया और इस बात किया की ब्राह्मणों ने समूचे इतिहास कर्म में निचली जातियों का अत्यधिक शोषण किया है और उनको छला है. ओले की व्याख्या के अनुसार हिंदू धर्म कुटिल ब्राह्मणों द्वारा निचली जातियों के शोषण करने के लिए एक ऐसी पद्धति रची गई जिसे वर्ण और जाति व्यवस्था पर आधारित एक धर्म था. 

ज्योतिबा फुले के अनुसार ब्राह्मणों समाज पर बहुत ही कुटल इरादों का आरोप लगाया फुले ने प्रार्थना समाज और ब्राह्मण समाज इन दोनों पर ही आरोप लगाया कि यह समाज निचली जातियों द्वारा जमा किए गए राजस्व तथा निचली जातियों के द्वारा की गई मेहनत संघर्ष से जो राजस्व इकट्ठा किया गया था प्राचीन इतिहास में ब्राह्मणों ने उस राजस्व के माध्यम से अपने समाज को उच्च दर्जे का स्थान देकर उसी प्रकार शिक्षित बनाया और निचले समाज जो ब्राह्मण के अनुसार बनाए गए थे उन्हें सदैव अपनी सेवा के लिए अपने नीचे ही बनाए रखा तथा उनके साथ छल किया.

ज्योतिबा फुले का यह भी मानना था कि ब्राह्मण संगठनों ने अपनी आत्मरक्षा के लिए और शुद्र का इस्तेमाल करने के लिए एक ऐसी सामाजिक अधिरचना तथा विचार निर्माण किया जिससे समाज में वर्ग भेद, जातिवाद, शूद्र जैसी विचारधाराओं का निर्माण हुआ तथा ब्राह्मण को सदैव ऊंचे स्तर का माना गया तथा ब्राह्मणों ने इन संगठनों के क्रियाकलापों का उद्देश्य था कि अपने राजनीति प्रेरित पूर्वजों द्वारा धर्म के नाम पर बनाई गई ऐसी अधिरचना को सदैव के लिए छुपा देना.

हिंदू धर्म और हिंदुत्व को ज्योतिबा ने क्यों खारिज किया

ज्योतिबा फुले ने हिंदुत्व तथा हिंदू धर्म को पूरी तरह खंडन कर अपने यहां बात रखी कि समाज के अंदर स्वतंत्रता और समानता का भाव होना चाहिए तथा सिद्धांतों पर आधारित सार्वभौम धर्म की प्रतिष्ठा का प्रयास उन्होंने सदैव किया. उनका सत्यशोधक समाज किसी गुरु अथवा ग्रंथ की सहायता के बिना सत्य की वास्तविकता पर बल देता था

ज्योतिबा के धार्मिक विचार निश्चय ही ईसाई धर्म से बहुत अधिक प्रभावित थे लेकिन उन्होंने धर्मांतरण का समर्थन कदापि नहीं किया क्योंकि उन पर पेन के उग्र धार्मिकता वादी तर्कों का प्रभाव भी अत्यधिक था जिसने इसाई धर्म की अनेकानेक त्रुटियों को भी लक्षित किया था.

उनका सार्वभौम धर्म उदारतावादी और अनेक ग्रंथो से पारंपरिक धर्मों से बिल्कुल अलग था उनके धार्मिक सरोवर मुख्यत तथा प्राथमिक रूप से सेक्यूलर विषय से जुड़ते थे सेक्यूलर शब्द से अभिप्राय है कि समाज में समानता तथा स्वतंत्रता कायम करना.

फुले की परिकल्पना में एक ऐसा परिवार गठित होना चाहिए जिसके प्रत्येक सदस्य अपने-अपने धर्म कर सकेंगे इस आदर्श परिवार के अंतर्गत पत्नी बौद्ध धर्म अपना सकती है जबकि पति ईसाई धर्म को भी अपना सकता है और बच्चे अन्य धर्म का अनुसरण कर सकेंगे फूले को विश्वास था कि सभी धार्मिक रचनाओं और ग्रंथों में सत्य का अंश हमेशा ही होना चाहिए.

ज्योतिबा फुले ने उनमें से कोई एक परम सत्य का दावा नहीं कर सकता उनका विचार था कि सरकार को हिंदू धर्म की अमानुष एक प्रथा और अन्याय पूर्ण परंपराओं की ओर आंख नहीं मूंद लेनी चाहिए तथा सरकार द्वारा ऐसी परंपराओं का पूर्ण रूप से खंडन करना चाहिए तथा कानूनी रूप से इसे अवैध मानना चाहिए।

ज्योतिबा ने सरकार की आलोचना कुछ इस प्रकार से भी की गई सरकार द्वारा मंदिरों को अनुदान जारी रखने पर भी ज्योतिबा फुले ने इस पर सवाल उठाए और इसकी आलोचना की क्योंकि यह धनराशि जो मंदिरों से जुटाई जाती है पुरानी हिंदू परंपराओं से कम ब्राह्मण वाद विचारधाराओं से ज्यादा जुटाए गए धन राशि करो के रूप में ही निचली जातियों से उगाई जाती है.