ऐसा समाज सुधारक जिसने ब्राह्मणवाद प्रथाओ का अंत किया

ऐसा समाज सुधारक जिसने ब्राह्मणवाद प्रथाओ  का अंत किया

दलितों के उत्थान के लिए बाबासाहेब ने कौन-कौन प्रयास समाज में किए थे।

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का जीवन बचपन से ही बहुत प्रकार के संघर्षों से बीता उन्हें अनेक प्रकार के भेदभाव तथा जातिवाद का सामना करना पड़ा और अपमानजनक और ऐसी अन्य प्रकार की घटनाओं का सामना करना पड़ा इस प्रकार की घटनाओं का सामना बाबासाहेब ने अपने छात्र जीवन में ही अनुभव कर लिया था।

अमेरिका से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्हें लगा कर मैं समाज में से अब जाति भेदभाव को खत्म कर सकता हूं लेकिन ऐसा ना हो सका और भारतीय समाज में ब्राह्मणवाद विचारधारा के कारण लगातार जातिवाद को बढ़ावा दिया जा रहा था डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी अपने ऊपर से अछूत होने का कलंक वह हटा ही नहीं सके तथा उन सब परिस्थितियों को देखकर उन्होंने अपने समाज को उजागर तथा उत्थान के लिए अनेक प्रयास किए।

शिक्षित बनो ,आंदोलन चलाओ और एकजुट होकर रहो।

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने हिंदुस्तान के अंदर दलितों की स्थिति को देखते हुए उन्हें यह तीन मूल मंत्र उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए दी अपने आप को शिक्षित बनाओ अगर आपको अधिकार नहीं प्राप्त होते तो एकजुट होकर आंदोलन चलाओ इन तीन मूल मंत्र देने के बावजूद भी समाज में दलितों का वही का वही था उन्हें आज भी अछूत माना जाता था।

बाबासाहेब ने लगातार दलितों के दिलों में भावना उत्पन्न की तथा उन्हें उनके जीवन को सही प्रकार से जीने तथा एक अच्छे और स्वस्थ जीवन जीने के लिए उकसाया तथा अपने अधिकारों की मांग करना दलितों को सिखाया उनका मानना था कि अगर आप शिक्षित नहीं बनोगे तो समाज में हमेशा आपका समुदाय पिछड़ा हुआ ही माना जाएगा तथा अन्य प्रकार के समुदाय आपके ऊपर चढ़ाई करने की कोशिश करेंगे तथा आप को दबाने का भी प्रयास निरंतर करते रहेंगे।

जो तीन मूल मंत्र बाबासाहेब ने दलित समुदाय को दिए थे शिक्षित होकर अपने अधिकारों को पाना तथा एकजुट होकर अपने जीवन को बेहतर बनाना इन मूल मंत्र को देने के बाद दलितों के दिलों में एक भावना उत्पन्न हुई उन्होंने अपने अधिकारों को सरकार के सामने रखा तथा अपनी मांगों को बनवा लिया और अनेक अनेक प्रकार के आंदोलन भी चलाते रहे, जिससे उनका समाज में वजूद धीरे-धीरे ऊपर जा रहा था।

बाबासाहेब के अनुसार उनका मानना था कि आप लोग यह जो मंदिर में जाकर ईश्वर की पूजा पाठ तथा ईश्वर में ध्यान लगाते हो और उनसे अपनी इच्छा मांगते हो, बाबासाहेब ने इन सभी परंपराओं का खंडन किया उनका कहना था कि अपने बलबूते पर समाज के लोगों को कुछ कर कर दिखाना चाहिए किसी के भरोसे नहीं रहना चाहिए क्योंकि पूजा अर्चना केवल आपके विश्वास के लिए है अब वह केवल आपके विश्वास को और ज्यादा विश्वास में बदल देती है तथा मेहनत करने के इच्छुक बिल्कुल भी नहीं रह जाते।

संघर्ष के बिना सत्ता की प्राप्ति नहीं हो सकती बाबासाहेब इस बात के साथ-साथ दलित को भी एक सही राह दिखाने का प्रयास करते थे, वह चाहते थे कि उनके समुदाय के लोग एक ऐसे समाज का निर्माण करें जो कि शिक्षित हो तथा समाज में उसका भी ऊंचा दर्जा रहे, तथा उनका यह भी कहना था कि यह सब जो परंपराएं हिंदुस्तान में बनी हुई है यह केवल प्राचीन ब्राह्मणवाद विचार धाराएं हैं जो केवल समाज के लोगों को वर्ग और जाति में बांटने का काम करते हैं।

बाबासाहेब दलित समुदाय और जो गैर ब्राह्मण थे उनको यह संदेश दिया करते थे कि आप ब्राह्मणवाद के चंगुल से बाहर आइए आपको जीवन जीने का एक बहुत ही अच्छा तरीका देखने को मिलेगा जिसके द्वारा आप शिक्षित होकर अपने समाज के लोगों को जातिवाद तथा वर्ग भेद और समाज की ऊंचाई से अलग करके एक कामयाब इंसान बना पाएंगे, तथा ऐसी ब्राह्मणवादी विचारधारा से आप को पुकारा पाने के लिए निरंतर आंदोलन करने पड़ेंगे और समाज में ऐसे ऐसे विचार धाराओं का जो कि समाज को जाति धर्म के आधार पर बांटने का काम करती है तथा ऊंच-नीच को बढ़ावा देती है ऐसी परंपराओं को मानने वाले लोगों का समाज में से बहिष्कार होना चाहिए।

पिछड़े समुदाय में जन जागृति लाने का प्रयास

डॉक्टर अंबेडकर अपने विचारों को अपने समुदाय के लोगों तक पहुंचाने के लिए दलित समुदाय के लोगों में जागृति पैदा करना चाहते थे, उन्होंने अनेक पत्रों और लेखों का भी प्रकाशन किया तथा ग्रंथों की रचना की और संस्थाओं की स्थापना निरंतर करते रहें उदाहरण के तौर पर बाबासाहेब ने 1920 में ‘मूकनायक’ नामक पाक्षिक पत्र का प्रकाशन शुरू किया। मूकनायक प्रकाशक के अंदर अग्र में लिखा था कि यदि भारत वासियों को अंग्रेजों ब्रिटिश सरकार से आजादी चाहिए तो उन्हें पहले पिछड़े वर्गों को मुक्त करना चाहिए इसी प्रकार डॉ भीमराव अंबेडकर ने 1927 में ‘बहिष्कृत भारत’ के नाम एक पत्र और लिखा साल 1928 में ‘समता’ नामक एक पाक्षिक पत्र का बाबासाहेब ने आरंभ किया।

‘हु वर शूद्राज’ प्रकाशक के भीतर बाबासाहेब ने बताया कि पहले केवल तीन ही वर्ण अस्तित्व में थे और शूद्र पहले सूर्यवंश के क्षत्रिय थे तथा ‘द प्रॉब्लम ऑफ इंडियन डिफेंस’ नामक ग्रंथ में म्हारो की रेजीमेंट खड़ी करने के लिए आग्रह किया था।

बाबासाहेब ने जिन संस्थाओं की स्थापना की उनमें प्रमुख है बहिष्कृत हितकारिणी सभा इसकी स्थापना जुलाई 20 1924 में की गई थी इस सभा के माध्यम से गरीबों और अछूतों की शिक्षा के लिए विद्यालय छात्रवास बनाए गए थे मुंबई में सिद्धार्थ कॉलेज की स्थापना भी की गई थी सन 1925 में पीपल एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की गई और 1928 में बहिष्कृत हितकारिणी सभा का नाम बदलकर ‘भारतीय बहिष्कृत समाज शिक्षा प्रसारक मंडल’ के रूप में बदल दिया गया

हिंदू धार्मिक ग्रंथों और वर्ण व्यवस्था पर बाबा साहेब के कठोर विचार।

बाबासाहेब ने अपने पत्रों, लेखों, और ग्रंथों में जहां दलितों शुद्र के जीवन को अच्छा बनाने की बात कही वहां उन्होंने हिंदू धार्मिक ग्रंथों वेद गीता श्रुति स्मृति पुराण आदि पर आधारित सिद्धांतों एवं प्रथाओं विशेषकर जाति प्रथा और वर्ण व्यवस्था को हिंदू धर्म और देश अध पतन के लिए उत्तरदाई ठहराया, बाबा साहेब का मानना था कि हिंदू धर्म के भीतर कई प्रकार के सुधार होने बाकी हैं क्योंकि उसमें शामिल ब्राह्मणवाद विचारधारा जिसके भीतर जातिवाद वर्ग में वर्ण व्यवस्था हिंदुस्तान में पैदा हुई है उन सभी परंपराओं का विनाश करके हिंदू धर्म को सही प्रकार से सुधारना चाहिए। बाबासाहेब ने अपने एक ग्रंथ ‘अनटचेबल’ के भीतर सुधरो के साथ हुए अत्याचारों का विस्तार रूप से व्याख्या की उनके अनुसार शूद्रों का उद्गम लगभग सन 400 ईसवी से हुआ।

बाबासाहेब ने ‘अनटचेबल’ ग्रंथ में बताया कि ब्राह्मणों ने अपने समाज को स्वच्छ बताने के लिए बौद्ध समाज को के लोगों को गलत ठहराया तथा गौ मांस खाना वर्जित किया, बाबा साहेब का मानना था कि ब्राह्मण केवल मंदिर के चंदे पर जीते हैं तथा अपने समाज के लोग जो चढ़ावा चढ़ाते हैं उनसे उनका जीवन चलता है, उन्होंने केवल इसलिए ऐसा विचार रखा कि प्राचीन समय से लेकर अब तक समाज के भीतर ब्राह्मणों द्वारा चलाए गए परंपराओं का प्रचलन हो रहा है तथा भारतवर्ष आए दिन बिछड़ता जा रहा है केवल अपने पुराने परंपराओं और रीति-रिवाजों जिसमें कि जातिवाद वर्ग भेद तथा वर्ण व्यवस्था भी कूट-कूट कर शामिल है।

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने अपने ग्रंथों ‘हु वर शुद्धराज’ के अंदर बताया कि सूत्र पहले सूर्यवंश के क्षत्रिय थे पहले केवल तीन ही वर्ण अस्तित्व तथा समाज में आए थे शुद्र समाज का क्षत्रियों में समावेश था परंतु ब्राह्मणों ने राजाओं का उपनयन करने से इंकार कर दिया इस कारण क्षत्रियों का यह आज अलग हो गया और उसे वेश्याओं से निकृष्ट समझा जाने लगा। डॉक्टर अंबेडकर का कहना था कि हिंदू धर्म ग्रंथों के सिद्धांतों पर आधारित वर्ण व्यवस्था और जाति प्रथा ही शूट के लिए उत्तरदाई है मनु ने समाज को 4 वर्णों में बांट दिया जिनमें ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र में इनका स्थान रख दिया इस वर्ण व्यवस्था से लोगों के कामकाज का विभाजन उनकी जातियों के आधार पर होने लगा बाबासाहेब के अनुसार वर्ण व्यवस्था धर्म को टिकाए रखने के लिए गीता की रचना की गई डब्लू एंड कुबेर के अनुसार अछूत जातिवाद का ही फल है यह कोई अलग प्रथा नहीं है।

अछूत जैसी कुप्रथा को वर्गीकरण करने वाली प्रक्रिया जातिवाद ही है, जिसके अंतर्गत निर्धनता, अज्ञानता, आ सहायता जीवन के लिए उत्तरदाई है। जातिवाद के कारण ही अछूतों को सामाजिक रूप से, आर्थिक दृष्टि से विभिन्न और राजनीतिक रूप से ऊंची जाती कहलाए जाती है, और उन्होंने छोटी जातियों वालों को अपना गुलाम बना रखा है।

डॉक्टर अंबेडकर जाति व्यवस्था तथा वर्ण व्यवस्था को समाज से पूरी तरह नष्ट करना चाहते थे तथा उसको फिर से पुनर्निर्माण करना चाहते थे कुछ इस प्रकार से जिसके भीतर किसी प्रकार की कोई भी वर्ण व्यवस्था की जगह ना हो तथा समाज में सब को सामाजिक रूप से आर्थिक रूप से समान दर्जा दिया जाए।

बाबासाहेब ने एक समय अपने विचारों में गांधीजी का वर्णन करते हुए बताया कि गांधी विचारधारा के लोग तथा जो समाज सुधारक हैं समाज में जो ऊंच-नीच फैली हुई है उसका विरोध तो करते हैं लेकिन जातिवाद तथा वर्ण व्यवस्था का अंत उनके अनुसार नहीं होना चाहिए यही कारण था कि भीमराव अंबेडकर तथा गांधीजी के बीच कई प्रकार के मतभेद देखने को मिले थे।

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने मनुस्मृति का दाह संस्कार कुछ अछूतों साधुओं से इसलिए करवाया था कि दुनिया इनसे एक समझ ले कि अब विषमता का कानून भारत में और नहीं चलेगा पुरोहितों का काम सब जातियों के लिए खुला हुआ है बाबासाहेब ने महार तालाब सत्याग्रह के बारे में कहा था कि वह दलितों की क्रांति की शुरुआत है जिसने भारत के राष्ट्रीय व सामाजिक जीवन में एक नए प्रकार का अध्याय प्रारंभ किया था।

बाबा साहेब का मानना था कि जो भारतवर्ष में धार्मिक स्थल है हिंदुओं के बनाए द्वारा मंदिरों में केवल ब्राह्मणों का ही एक अधिकार नहीं होना चाहिए सबको इस का अवसर मिलना चाहिए क्योंकि ब्राह्मण एक ऐसी विचारधारा से ताल्लुक रखते हैं जिसके भीतर जातिवाद तथा वर्ण व्यवस्था को बढ़ावा दिया जाता है।

राजनीति सकता था विशेष प्रतिनिधित्व करने का प्रयास बाबा साहेब के द्वारा।

बाबासाहेब ने समाज के दलितों तथा निचले तबके के लोगों को इस बात के लिए उजागर किया कि आप लोगों का भी समाज में कोई महत्व होना चाहिए तथा देश की प्रगति में आपका भी बराबर का हिस्सेदार होना चाहिए हर जगह इसके पीछे यहां कारण था कि अगर आप की हिस्सेदारी समाज के कल्याण तथा देश की प्रगति में होगी तो आप लोगों की महत्वता समाज में काफी बढ़कर होगी।

दलितों तथा निचले तबके के लोगों का राजनीतिक जीवन बहुत ही नीचे स्तर का है उन्हें उनके जाति तथा वर्ण व्यवस्था के कारण अभी राजनीति में अवसर नहीं मिल पाया, बाबासाहेब के अनुसार अगर आपके हाथ में सत्ता है तो आप समाज में अपने समुदाय तथा अनेक समुदाय को एक अच्छा जीवन दान देने में सक्षम होंगे साथ ही अगर आपके पास सत्ता की चाबी होगी तो आप समाज को अपनी विचार धारा से चला सकेंगे लेकिन आप की विचारधारा में किसी प्रकार का कोई भेदभाव जातिवाद तथा वर्ण व्यवस्था को बढ़ावा नहीं देना होगा तभी जाकर एक एक अच्छे स्वतंत्र स्वच्छ समाज का निर्माण होगा जिसमें समाज के लोग आपको पसंद करेंगे तथा आप का समर्थन करेंगे।

बाबासाहेब ने दलितो को उजागर इसलिए भी किया कि आप लोगों को ना केवल समाज की प्रगति में काम आना है साथ ही साथ आपको भारतवर्ष के राजनीति में भी अपनी जगह बनानी है चाहे वह कोई भी राजनीतिक पार्टी हो या मंत्रिमंडल विधानसभा या लोकसभा के भीतर आपको अपनी जगह बनानी है शिक्षित होकर।

दूसरे गोलमेज सम्मेलन में बाबासाहेब ने अछूतों के लिए अलग-अलग कार प्राप्त करने का भरपूर प्रयास किया तथा अपनी मांगे सामने रखी प्रधानमंत्री मैकडॉनल्ड के अनुसार 1932 के सांप्रदायिक फैसले ने अछूतों को स्वतंत्र मतदान संघ और सुरक्षित स्थानों दोनों का अधिकार प्राप्त कर दिया साथ ही साथ वह हिंदू प्रतिनिधियों के चुनाव में भी मत अधिकार का उपयोग कर सकते थे गांधी जी ने इस निर्णय के विरुद्ध यरवदा जेल में आमरण उपवास शुरू कर दिया तथा वह हिंदू समाज के विघटन को डालना चाहते थे, 24 सितंबर 1932 को पूना पैक्ट का समझौता हुआ था उसके अनुसार अछूतों को 71 के स्थान पर 148 वां स्थान मिले जो कि उनकी जनसंख्या के अनुपात से अधिक प्रतिनिधित्व था, लेकिन उन्हें अपने प्रतिनिधि खुद चुनने के अधिकार से वंचित होना पड़ा।

भारतीय संविधान में अछूतों का निवारण।

डॉक्टर अंबेडकर ने भारतीय संविधान को कुछ इस प्रकार से रचा की कोई भी निकला समुदाय तथा अन्य समुदाय अपनी आजादी को ना खोदे तथा समाज में किसी भी प्रकार का विभेद तथा वर्ग भेद देखने को ना मिले बाबासाहेब ने कुछ ऐसे संविधान का निर्माण किया जिसके भीतर उनका कहना था कि सामाज में जो
पुरानी परंपराएं तथा व्यवस्थाएं चलती आ रहे हैं जिसके कारण अनेक समुदाय को निचले स्तर पर जीना पड़ता है उन्होंने इस बात का दावा किया कि हम सभी दान में से हर प्रकार का भेदभाव जातिवाद को पूरी तरह से नष्ट कर देंगे तथा सभी को समान अधिकार प्राप्त होंगे और सभी को स्वतंत्र तरीके से भारतवर्ष में जीने का अधिकार होगा चाहे वह किसी भी जाति धर्म लिंग से आधारित हो।

अनुच्छेद 14 के भीतर बाबासाहेब ने इस बात की व्यवस्था को पूरा किया कि राज्य किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समानता से और विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा सभी को समान अधिकार मिलेगा। अनुच्छेद 15 के भीतर राज्य किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान,सभी के लिए एक कानून होगा जो आजादी से अपने समाज में अपना जीवन व्यतीत कर सकें। अनुच्छेद 17 के भीतर अछूतों ना केवल आजादी से तथा बिना किसी भेदभाव से जीने का अधिकार दिया तथा उसके रूप में आचरण को निश्चित करता है अछूतों से उप जी कोई भी निर्योग्यता दंडनीय अपराध मानी जाएगी सविधान लोकसभा राज्यों के विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था करेगा तथा पिछड़े वर्गों की दशा को सुधारने का प्रयास करेगा क्योंकि प्राचीन समय से जो पिछड़े वर्ग परंपराओं तथा अव्यवस्था के कारण पीछे रह गए उन्हें पूरी तरह आरक्षण प्रदान करेगा उनके आने वाले जीवन को बेहतर जिंदगी देने के लिए।

महाड आंदोलन में बाबा साहेब ने कौन सी शर्ते रखी।

डॉक्टर अंबेडकर की धार ना कुछ इस प्रकार की थी कि स्वयं ही अपनी हीन भावना और आदतों के शिकार बनते जा रहे हैं और उन्हें उनसे मुक्ति पानी ही चाहिए उन्होंने महान आंदोलन के समय अछूत से इन बातों का अवलंबन करने के लिए कहा था की अगर आपके सामने कोई जानवर मरा पड़ा है तो आप उसको बिल्कुल भी नहीं खाएंगे तथा कोई समुदाय के लोग आपसे यह कहते हैं कि इसको साफ करो यहां से हटाकर आप उनकी बात बिल्कुल भी नहीं मानेंगे।

बाबासाहेब ने दलितों से आग्रह तथा उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए उनके सामने यह विचार रखा कि हमारा शोषण प्राचीन समय से ही होता आ रहा है आने वाले समय में आज से ही आप इस बात को स्वीकार कीजिए कि आप किसी भी समुदाय के झूठे खाने का सेवन नहीं करेंगे तथा उसका पूरी तरह विरोध करेंगे।

डॉ आंबेडकर ने दलितों से कहा कि आप और ऊंचे पद वाले लोगों से बिल्कुल भी याचना नहीं करेंगे और आपको जो संवैधानिक अधिकार प्राप्त है आप उन को इस्तेमाल करके अपना पद तथा अपने अधिकारों को हासिल करेंगे और जब तक आप को इंसाफ नहीं मिल जाता आप सब वैधानिक तौर पर अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहेंगे।

बाबासाहेब के के द्वारा दलितों को शपथ दिलाई गई कि दलित समुदाय के लोग तथा पिछड़े वर्गों के समुदाय के लोग किसी भी अन्य समुदाय की दास्तां नहीं करेंगे तथा इसी प्रकार का शोषण भी अपने साथ नहीं होने देंगे और अगर कोई आपके ऊपर अत्याचार करता है तो आप कानूनी और संवैधानिक तौर पर उस इंसान को सजा दिलाएंगे, अपने समाज की औरतों को शिक्षित बनाएंगे तथा अपने समाज को बेहतर बनाने का निरंतर प्रयास करते रहेंगे जब तक आपका समाज ऊंचे स्तर का नहीं हो जाता, आपके समाज का हर एक व्यक्ति चाहे वह पुरुष या महिला हो सभी को शिक्षित होना अनिवार्य होगा ही होगा, आने वाले समय में अपनी आने वाली पीढ़ियों को शिक्षित बना पाएंगे तथा उनका शोषण होना बिल्कुल समाप्त हो जाएगा।

येवला सम्मेलन

बाबा साहेब का मानना था कि धर्म की नीव कई प्रकार की विषमताओं पर टिकी हुई है, बाबासाहेब ने येवला सम्मेलन में इस प्रकार का प्रस्ताव दलितों के लिए पारित तथा निचले तबकों के समुदाय के लोगों के लिए किया की दलित समुदाय और जिन्हें अछूत माना जाता है तथा जिन को पिछड़े वर्गों का दर्जा दिया गया है वह हिंदू धर्म को त्याग कर कोई ऐसा धर्म अपनाएं जिसके भीतर सामाजिक रूप से तथा धार्मिक रूप से समानता पाई जाती हो।

येवला सम्मेलन मैं बाबासाहेब ने लोगों के सामने प्रतिज्ञा ली कि मैं हिंदू धर्म में रहकर बिल्कुल भी नहीं मरना चाहता इस प्रतिज्ञा को सच करते हुए डॉक्टर अंबेडकर ने नागपुर में 14 नवंबर साल 1956 को भिक्षु चंद्रमणि महास्थरवीर से त्रिशरण पंचशील ग्रहण कर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली उस समय उन्होंने स्वयं के द्वारा तैयार की हुई प्रतिज्ञाएं भी ली।

बाबासाहेब ने भारतीय संविधान और कानून के माध्यम से जाति प्रथा और अछूतों का उन्मूलन कर अपने संकल्प को पूरा किया अर्थात जो वह चाहते थे उन्होंने समय के साथ साथ उसको पूरा कर दिया भारतीय संविधान भारत के भीतर एक ऐसे समाज का निर्माण करता है जिसके अंदर किसी भी प्रकार का शोषण तथा जातिवाद और किसी भी प्रकार का किसी भी नागरिक के साथ ऊंच-नीच की परंपराओं को नष्ट करता है, और आजादी से सभी नागरिकों को उनके समाज में तथा देश में जीवन जीने का अवसर प्रदान करता है साथ ही साथ सविधान का निर्माण कुछ इस प्रकार से किया गया है कि सामाजिक रुप से सभी समुदाय को समान दर्जा दिया गया है तथा आरक्षण उन पिछड़े दर्जो को दिया गया है, जो प्राचीन समय में ब्राह्मणवाद विचारधारा का शिकार होकर अपने समाज का विकास नहीं कर पाए तथा अब तक भी पिछड़े हुए ही हैं तथा आरक्षण तब तक निरंतर रखा जाएगा जब तक पिछड़े समुदाय के लोग आर्थिक रूप से मजबूत नहीं हो जाते। भारतीय संविधान भारत देश में सभी नागरिकों को वर्ण व्यवस्था जाति व्यवस्था तथा अनेक प्रकार की परंपराओं को नष्ट करके आजादी से जीने का अधिकार प्रदान करता है