रानी लक्ष्मीबाई के जीवन का सार

रानी लक्ष्मी बाई के जीवन का सार

रानी लक्ष्मीबाई का जीवन परिचय?

रानी लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी के एक ब्राह्मण परिवार मैं हुआ था, उनका नाम मणिकर्णिका रखा गया था , साथ ही उन्हे समाज के लोग मनु कहकर बुलाया करते थे, ये नाम मनु को जादा पसंद था, मनु के पिता का नाम मोरोपंत था तथा माता का नाम भागीरथी बाई था।

लेकिन माँ का साथ मनु के जीवन मैं कुछ जादा नहीं रेह पाया उनकी माँ भागीरथी का देहांत जब हुआ जब मनु केवल 4 साल की थी , बहुत ही छोटी उम्र मैं ही मनु के सर से माँ का साया उठ गया था।
लक्ष्मीबाई के पिता बिठुर के पेशवा के दरबार मैं कार्यरत थे, पेशवा ने ही मनु का भरण पोषण किया , वे उसे छबीली कहा करते थे, माता के देहांत के बाद , उन्होने ही उसे आत्मनिर्भर बनाया तथा समाज मैं अपने जीवन को कैसे जीना है , यह सब सिखाया।

मनु की शिक्षा

मनु की शिक्षा जादा तर घर पर ही हुई थी , उसने धनुविध्या, घुड़सवारी आदि भी सीखि, आत्मरक्षा के गुण वह अपना बचाव किस प्रकार से करना है , मनु छोटी सी उम्र मैं ही सीख गयी थी। 1842 मैं उनका विवाह झांसी के महाराजा गंगाधर राव से हुआ उसके बाद ही व मनु से रानी लक्ष्मीबाई पड़ा, 1851 मैं दामोदर राव नामक पुत्र को रानी लक्ष्मीबाई ने जन्म दिया, पर पुत्र चार महीने की उम्र मैं ही उसका देहांत हो गया।
राजा गंगाधर राव ने अपने चचरे भाई के बेटे आनंद राव को गोद लिया, पर अपने पुत्र के गुजर जाने के सदमे मैं राजा गंगाधर राव का 21 नवम्बर, 1853 को स्वर्ग सिधार गए, मरने से पहले राव ने आनंद राव का नाम दामोदर राव रख दिया।

कठिनाइयो का जीवन

पुत्र व पति के देहांत के बाद रानी लक्ष्मी बाई का जीवन बहुत ही कठिनाइयो मैं पड़ गया, वह यह थी ब्रिटिश राज्याधिकारियों ने उनके दत्तक पुत्र श्री दामोदर राव को झांसी का वैधानिक उताराधिकारी मानने से मना कर दिया, वास्तव मैं झांसी के राजा की की मृत्यु के बाद भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड डल्होजी ने झांसी राज्य मैं मिलाने की योजना बना ली थी, इसलिए 1854 मैं उन्होने रानी लक्ष्मी बाई का किला छोड़कर जाने का आदेश दिया, रानी ने आदेश को अस्वीकार कर दिया तथा जंग लड़ने का फैसला लेकर , मोर्चा संभाला।

उसने सफलतापूर्वक एक विधद्रोहियों की सेना गठित की जिसमे महिलाए भी शामिल थी , इस सेना को बहुत से स्वतंत्र सेनानियो का समर्थन प्राप्त हुआ था, 10 मई 1857 को ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति यह पहला विद्रोह था , लक्ष्मीबाई स्व्यम साहस की मूर्ति बनी तथा अपनी प्रजा को भी विदेशी आक्रमण के विरुद्ध खड़े होने का साहस देती रही।

ब्रिटिश शासको पर आक्रमण

मार्च, 1858 मे ब्रिटिश शासको ने झांसी पर आक्रमण कर दिया, लक्ष्मीबाई व उसकी सेना ने वीरता से सामना किया, ब्रिटिश सेना ने झांसी को अपने अधिकार मे ले लिया। लक्ष्मीबाई को सेना सहित भागकर कालपी मैं शरण लेनी पड़ी।
एक बार फिर तात्याटोपे व उनके सैनिको के साथ मिलकर ग्वालियर पर अपना अधिकार कर लिया। लेकिन अँग्रेजी सेना फिर जनरल स्मिथ के साथ आक्रमण करने आ गई। युद्ध क्षेत्र मैं रानी तथा उसकी सखियो ने जमकर युद्ध किया । पर पीछे हयूरोज आ गया, रानी घिर गई , तथा युद्ध करते करते ही रानी लक्ष्मीबाई ने लड़ते लड़ते प्राण त्याग दिये।

रानी लक्ष्हमीबाइ की विशेषता

रानी लक्ष्मीबाई स्वतंत्र की अलख जगाने वाली महिला थी, वीरता, देशभक्ति, आत्मस्मान की प्रतीक थी ।
प्रथम विद्रोह वह भी ब्रिटिश राज के वीरुध शुरू उनके द्वारा ही हुआ, स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियो के लिए अत्यंत प्रेरणा का स्रोत रही, उनके जीवन पर आधारित बहुत सी रचनाए लिखी गई।

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