भगत सिंह नास्तिक क्यू बने ?

भगत सिंह नास्तिक क्यू बने ?

मैं नास्तिक क्यों हूं यह लेख भगत सिंह ने लाहौर की जेल में रहते हुए लिखा था यह लेख 27 सितंबर 1931 को लाहौर के अखबार ‘द पीपल’  में प्रकाशित किया इस लेख में  सिंह ने ईश्वर की अनुपस्थिति पर  अनेक तर्कपूर्ण सवाल खड़े किए और इस संसार के निर्माण मनुष्य के जन्म मनुष्य के मन में ईश्वर की कल्पना के साथ-साथ संसार में मनुष्य की तीव्रता उसके शोषण दुनिया में व्याप्त अराजकता और वर्ग भेद की स्थितियों का भी विश्लेषण किया

यह भगत सिंह के लेखन के सबसे चर्चित होने से रहा स्वतंत्रता सेनानी बाबा रणजीत सिंह 1930 से 1931 के बीच लाहौर की सेंट्रल जेल में कैद थे वह एक धार्मिक व्यक्ति थे जिन्हें यह ज्ञान पर बहुत ही कष्ट हुआ कि भगत सिंह का ईश्वर पर विश्वास नहीं है वह किसी तरह भगत सिंह की  कोटरी में पहुंचने पर सफल हुए और उन्हें ईश्वर के अस्तित्व पर यकीन दिलाने की कोशिश की असफल होने पर बाबा ने नाराज होकर कहा प्रसिद्धि सिर्फ तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है और तुम अहंकारी बन गए हो जो कि एक काले पर्दे की तरह तुम्हारी और ईश्वर के बीच खड़ी है इस टिप्पणी के जवाब में ही भगत सिंह ने यह लेख लिखा।

भगत सिंह नास्तिक क्यू थे ? उनके विचार क्या थे ?

भगत सिंह के लफ्ज: –

मेरा नास्तिकता वाद कोई अभी हाल की उत्पत्ति नहीं है मैंने तो ईश्वर पर विश्वास करना तब ही छोड़ दिया था जब मैं एक प्रसिद्ध नौजवान था। कम से कम 1 कॉलेज का विद्यार्थी तो ऐसे किसी अनुचित  अहंकार को नहीं पाल हो सकता था।  जो उसे नास्तिकता की ओर ले जाए यद्यपि मैं कुछ अध्यापकों का चहेता भी था तथा कुछ अन्य अध्यापकों को मैं पसंद भी नहीं था।  पर मैं कभी भी बहुत मेहनत नहीं करता था और ना ही मैं पढ़ाई में ज्यादा सफल रहा तो अहंकार जैसी भावना मेरे मन में कभी आ ही ना सकी ना ही कभी मुझे ऐसा मौका मिला कि मैं अपने ऊपर अहंकार कर सकूं मैं तो एक बहुत ही सरल किसम का इंसान था।  जो काफी हद तक शर्मीला था जिसकी भविष्य के बारे में कुछ निराशावादी प्रकृति थी मेरे बाबा जिनके प्रभाव में मैं बड़ा हुआ था एक रूढ़िवादी आर्य समाज इन थे ।

एक आर्य समाजी और कुछ भी नास्तिक नहीं होता,  अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद मैंने डीएवी स्कूल लाहौर में प्रवेश लिया और पूरे एक साल उसके छात्रावास में रहा वहां सुबह और शाम की प्रार्थना के अतिरिक्त में घंटों गायत्री मंत्र का जाप करता था उन दिनों में पूरा भक्त था बाद में मैंने अपने पिता के साथ रहना शुरू किया जहां तक धार्मिक रूढ़िवादी का प्रश्न है वह एक उदारवादी व्यक्ति है । उन्हीं की शिक्षा से मुझे स्वतंत्रता  की इच्छा के लिए अपने जीवन को समर्पित करने की प्रेरणा मिली किंतु वह नास्तिक नहीं है. उनका ईश्वर में पूरा विश्वास है वह मुझे प्रतिदिन पूजा प्रार्थना के लिए प्रोत्साहित करते थे इस प्रकार से मेरा पालन-पोषण हुआ वह असहयोग आंदोलन के दिनों में राष्ट्रीय कॉलेज में प्रवेश लिया यहां आकर ही मैंने सारी धार्मिक समस्याओं यहां तक कि ईश्वर के अस्तित्व के बारे में उदारता पूर्वक सूचना विचारना तथा उसकी आलोचना करना शुरू किया।

आस्तिक की ओर भगत सिंह के लफ्ज

समय बीतता गया और मैं अभी भी पूरा पक्का आस्तिक था उस समय तक मैं अपने लंबे बाल रखा करता था। यद्यपि मुझे कभी-कभी सिख या अन्य धर्मों की पौराणिकता और सिद्धांतों में विश्वास ना हो सका था।  पर मेरी ईश्वर के अस्तित्व में पूरी सच्ची निष्ठा थी बाद में मैं क्रांतिकारी पार्टी से जुड़ा वहां जिस पहली नेता से मेरा संपर्क हुआ वह पक्का विश्वास ना होते हुए ईश्वर के अस्तित्व को नकारने का साहस नहीं कर सकते थे।

ईश्वर के बारे में मेरे हट पूर्वक पूछते रहने पर वह कहते ‘जब इच्छा हो तब पूजा कर लिया करो’ यह नास्तिकता है जिसमें साहस का अभाव है मैं जब दूसरे नेता जिनके में संपर्क में आया पक्के श्रद्धालु आदरणीय कामरेड सचिंद्र नाथ आजकल काकोरी षड्यंत्र केस के सिलसिले में आजीवन कारावास भोग रहे थे उनकी पुस्तक ‘बंदी जीवन’  ईश्वर की महिमा का जोर शोर से गांव है उन्होंने उस में ईश्वर के ऊपर प्रशंसा के पुष्प रहस्य आत्मक वेदांत के कारण बताए हैं।

28 जनवरी उन्हीं के बौद्धिक श्रम का परिणाम है उसमें सर्वशक्तिमान और उसकी लीला एवं कार्य की प्रशंसा की गई है मेरा ईश्वर के प्रति अविश्वास का भाव क्रांतिकारी दल में भी प्रस्फुटित नहीं हुआ था काकोरी के सभी 4 शहीदों ने अपने अंतिम दिन भजन प्रार्थना में गुजारे थे राम प्रसाद बिस्मिल एक रूढ़िवादी आर्य समाज इन थे समाजवाद तथा साम्यवाद में अपने व्रत अध्ययन के बावजूद राजेंद्र लाहादि उपनिषद और गीता के श्लोकों के उच्चारण की अपनी अभिलाषा को दबाना सके मैंने उन सब में सिर्फ एक ही व्यक्ति को देखा जो कभी प्रार्थना नहीं करता था और कहता था दर्शनशास्त्र मनुष्य की दुर्लभता अथवा ज्ञान के सीमित होने के कारण उत्पन्न होता है वह भी आजीवन निर्वासन की सजा काट रहे थे परंतु उसने भी ईश्वर के अस्तित्व को नकारने की हिम्मत नहीं की।

आदर्शवादी से क्रातिकारी वह घोषित नास्तिक के लफ्ज

इस समय तक केवल में एक आदर्शवादी क्रांतिकारी था अब तक हम दूसरों का अनुसरण करते थे अब अपने कंधों पर जिम्मेदारी उठाने का समय आ गया था वह मेरे क्रांतिकारी जीवन का एक निर्णायक बिंदु था अध्ययन की पुकार मेरे मन के गलियारों में गूंज रही थी। विरोधियों द्वारा रखे गए तर्कों का सामना करने योग्य बनने के लिए अध्ययन करो।  अपने मत के पक्ष में तर्क देने के लिए सक्षम होने के वास्ते पढ़ो मैंने पढ़ना शुरू कर दिया।

मेरे पुराने विचार वह विश्वास अद्भुत रूप से नष्ट हो गए रोमांच की जगह गंभीर विचारों ने लेली, और अधिक रहस्यवाद ना ही अंधविश्वास यथार्थवाद हमारा आधार बना मुझे विश्व क्रांति के अनेक आदर्शों के बारे में पढ़ने का खूब मौका मिला मैंने अराजकतावादी नेता बाकुनिन को पढ़ा  कुछ समय बाद के पिता मार्क्स को किंतु अधिक लेनिन व अन्य लोगों को पढ़ा जो अपने देश में सफलतापूर्वक क्रांति लाए थे यह सभी नास्तिक थे।

बाद में मुझे ‘निर्लम्ब स्वामी की पुस्तक सहज ज्ञान’  मिली इसमें रहस्यवादी नास्तिकता थी 1926 के अंत तक मुझे इस बात का विश्वास हो गया कि एक सर्वशक्तिमान परमात्मा की बात जिसने ब्रह्मांड का सृजन दिग्दर्शन और संचालन किया एक कोरी बकवास है मैंने अपने इस अंधविश्वास को प्रदर्शित किया मैंने इस विषय पर अपने दोस्तों से बहस कि मैं एक घोषित नास्तिक हो चुका था ।

काकोरी जेल मे एक योजना

समय था मई 1927 में मैं लाहौर में गिरफ्तार हुआ रेलवे पुलिस हवालात में मुझे एक महीना काटना पड़ा पुलिस अफसरों ने मुझे बताया कि मैं लखनऊ में था जहां काकोरी दल मुकदमा चल रहा था कि मैंने उन्हें छुड़ाने की किसी योजना पर बात की थी । उनकी सहमति पाने के बाद हमने कुछ बम प्राप्त किए थे कि 1927 में दशहरा के अवसर पर उन दोनों में से एक प्रशिक्षण के लिए भीड पर फेंका गया कि यदि में क्रांतिकारी दल की गतिविधियों पर प्रकाश डालने वाला एक वक्तव्य दे दूं तो मुझे गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।

और इसके विपरीत मुझे अदालत में मुखबिर की तरह पेश किए बगैर रिहा कर दिया जाएगा और इनाम दिया जाएगा मैं इस प्रस्ताव पर हंसा यह सब बेकार की बातें हम लोगों की भांति विचार रखने वाले अपने निर्दोष जनता दरबार नहीं पता करके एक दिन सुबह सी आई डी के वरिष्ठ अधीक्षक श्री न्यूमून ने कहा यदि मैं ऐसा वक्तव्य नहीं दिया तो मुझ पर काकोरी केस से संबंधित विद्रोह छेड़ने के षड्यंत्र तथा दशहरा उपद्रव में क्रूर हत्याओं के लिए मुकदमा चलाने पर बाध्य होंगे और कि उनके पास मुझे सजा दिलाने व फांसी पर लटकाने के लिए उचित प्रमाण हैं उसी दिन से कुछ पुलिस अफसरों ने मुझे नियम से दोनों समय ईश्वर की स्तुति करने के लिए फुसलाना शुरू किया ,पर अब मैं एक सच्चा नास्तिक था मैं खुद के लिए यह बात तय करना चाहता था कि क्या शांति और आनंद के दिनों में ही नास्तिक होने का दंभ भरता हूं या ऐसे कठिन समय में भी उन सिद्धांतों पर खड़ा रह बहुत सोचने के बाद मैंने निश्चय किया कि किसी भी तरह ईश्वर पर विश्वास तथा प्रार्थना मैं नहीं कर सकता नहीं मैंने एक क्षण के लिए भी नहीं कि यही असली परीक्षण था और मैं सफल रहा अब मैं एक पक्का आविश्वासी था ।

और तब से लगातार हूं इस परीक्षण पर खरा उतरना आसान काम नहीं था। विश्वास कष्टों को हल्का कर देता है यहां तक कि उन्हें सुख दर बना सकता है ईश्वर में मनुष्य को अत्यधिक संतुष्टि देने वाला एक आधार मिल सकता है उसके बिना मनुष्य को अपने ऊपर निर्भर करना पड़ता है तूफान और आंधी के बीच अपने पांव पर खड़ा रहना कोई बच्चों का खेल नहीं है परीक्षा की इन घड़ियों में अहंकार यदि है तो भाप बन कर उड़ जाता है । और मनुष्य अपने विश्वास को ठुकराने का साहस नहीं कर पाता यदि ऐसा करता है तो यह निष्कर्ष निकलता है कि उसके पास सिर्फ अहंकार नहीं वरन कोई अन्य शक्ति है आज बिल्कुल वैसी ही स्थिति है। निर्णय का पूरा पूरा पता है एक सप्ताह के अंदर ही यह घोषित हो जाएगा कि मैं अपना जीवन एक लक्ष्य न्योछावर करने जा रहा हूं इस विचार के अतिरिक्त और क्या संतुष्टि हो सकती है ईश्वर में विश्वास रखने वाला हिंदू पुनर्जन्म पर राजा होने की आशा कर सकता है एक मुसलमान या ईसाई स्वर्ग में व्याप्त समृद्धि के आनंद की तथा अपने कष्टों और बलिदान के लिए पुरस्कार की कल्पना कर सकता है।

किंतु मैं क्या आशा करूं मैं जानता हूं कि जिस समय  रस्सी का फंदा मेरी गर्दन पर लगेगा और मेरे पैरों के नीचे से तख़्ता हटेगा वह मेरे जीवन का अंतिम क्षण होगा मैं और मेरी आत्मा सब वहीं समाप्त हो जाएंगे आगे कुछ ना रहेगा । एक छोटी सी झुजती हुई जिंदगी जिसकी कोई ऐसी गौरव शील परिणीति नहीं है अपने में स्वयं एक पुरस्कार होगी यदि मुझसे इस दृष्टि से देखने का साहस हो बिना किसी स्वार्थ के यहां या यहां के बाद पुरस्कार की इच्छा के बिना मैंने अनासक्त भाव से अपने जीवन को आजादी संतुष्टि के लिए समर्पित कर दिया है क्योंकि मैं और कुछ नहीं कर सकता था जिस दिन हमें इस मनोवृति के बहुत से पुरुष और महिलाएं मिल जाएंगे जो अपने जीवन को मनुष्य की सेवा और पीड़ित मानवता के उद्धार के अतिरिक्त कहीं समर्पित नहीं कर सकते उसी दिन मुक्ति के युग का शुभारंभ होगा।

शोषकों, उत्पीड़न और अत्याचार यों को चुनौती देने के लिए आगे होंगे इसलिए नहीं कि मैं उन्हें राजा बनना है या कोई अन्य पुरस्कार प्राप्त करना है यहां या अगले जन्म में स्वर्ग में उन्हें तो मानवता की गर्दन से दासता का जुआ उतार फेंकने और और मुक्ति और शांति स्थापित करने के लिए मार्ग को अपनाना होगा क्या वह उस रास्ते पर चलेंगे जो उनके अपने लिए खतरनाक किंतु उनकी महान आत्मा के लिए एकमात्र कल्पनीय रास्ता है

इस महान संतुष्टि की प्रति उनके गर्भ को अहंकार कहकर उसका गलत अर्थ लगाया जाएगा कौन इस प्रकार की बुरा विशेषण बोलने का साहस करेगा या तो वह मूर्ख है या धूर्त है हमें चाहिए कि उसे क्षमा कर दें क्योंकि वह उस हृदय से उद्वेलित उच्च विचारों भावनाओं आवेगो तथा उनकी गहराई को महसूस नहीं कर सकता का ह्रदय मास के एक टुकड़े की तरह मरा हुआ है उसकी आंखों पर अन्य स्वार्थों के प्रेतों की छाया पड़ने से वे कमजोर हो गई हैं खुद पर भरोसा रखने के गुण को सदैव अहंकार की संज्ञा दी जाती है यह दुख पूर्ण और दुखदाई है पर चारा ही क्या है?

आलोचना और आजाद विचार पर भगत सिंह के लफ्ज

आलोचना और स्वतंत्र विचार एक क्रांतिकारी के दोनों अनिवार्य गुण हैं क्योंकि हमारे पूर्वजों ने किसी परमात्मा के प्रति विश्वास बना लिया था अंतः कोई भी व्यक्ति जो उस विश्वास को सत्यता या उस परमात्मा के अस्तित्व को चुनौती दे उसको विधर्मी विश्वासघाती कहा जाएगा ।

यदि उसके तर्क इतने अकाट्य है कि उनका खंडन वितर्क द्वारा नहीं हो सकता और उसकी आस्था इतनी प्रबल है कि उसे ईश्वर के प्रकोप से होने वाली से होने वाली विपत्तियों का भय दिखाकर दबाया नहीं जा सकता तो उसकी यह कहकर निंदा की जाएगी कि वह अभिमानी है यह मेरा अहंकार नहीं था जो मुझे नास्तिकता की ओर ले गया मेरे तर्क का तरीका संतोष प्रसिद्ध होता है या नहीं इसका निर्णय मेरे पाठकों को करना है मुझे नहीं मैं जानता हूं कि मुझे ईश्वर पर विश्वास ने आज मेरा जीवन आसान और मेरा बोझ हल्का कर दिया होता उस पर मेरे अविश्वास ने सारे वातावरण को अत्यंत शुष्क बना दिया है थोड़ा सा रहस्यवाद इसे कविता में बना सकता है किंतु मेरे भाग्य को किसी उन्माद का सहारा नहीं चाहिए।

यथार्थवादी के लफ्ज

स्वामी रामतीर्थ के अनुसार– यथार्थवाद का अर्थ वह विश्वास या सिद्धांत है जो जगत को वैसे ही स्वीकार करता है जैसा कि हमें दिखाई देता है ।

मैं यथार्थवादी हूं मैं प्रकृति पर विवेक की सहायता से विजय चाहता हूं इस संतुष्टि में मैं सदैव सफल नहीं हुआ प्रयास करना मनुष्य का कर्तव्य है सफलता तो सहयोग तथा वातावरण पर निर्भर करती है क्योंकि कोई भी जिसमें तनिक भी विवेक शक्ति है वह अपने वातावरण को तार्किक रूप से समझना चाहेगा जहां सीधा प्रमाण नहीं है वहां दर्शन शास्त्र का महत्व जब हमारे पूर्वजों ने फुर्सत के समय विश्व के रहस्य को इसके भूत वर्तमान और भविष्य को इसके क्यों और कहां से को समझने का प्रयास किया तो सीधे परिणामों के कठिन अभाव में हर व्यक्ति ने इन प्रश्नों को अपने ढंग से हल किया यही कारण है कि विभिन्न धार्मिक मतों में हमको इतना अंतर मिलता है जो कभी कभी मन रहस्य तथा झगड़े का रूप ले लेता है।

ना केवल पूर्व और पश्चिम के दर्शनों में मतभेद है बल्कि प्रत्येक गोलार्ध के अपने विभिन्न मतों में आपस में अंतर है पूर्व के धर्मों में इस्लाम तथा हिंदू धर्म में जरा भी अनुरूपता नहीं है भारत में ही बौद्ध तथा जैन धर्म उस ब्राह्मणवाद से बहुत अलग है जिसमें स्वयं आर्य समाज व सनातन धर्म जैसे विरोधी मत पाए जाते हैं।

पुराने समय का एक स्वतंत्र विचारक चार्वक है उसने ईश्वर को पुराने समय में ही चुनौती दी थी हर व्यक्ति अपने को सही मानता है दुर्भाग्य की बात है कि बजाय पुराने विचारों को के अनुभवों तथा विचारों को भविष्य मैं अज्ञानता के विरुद्ध लड़ाई का आधार बनाने के लिए हम आलसी मनुष्य की तरह जो हम सिद्ध हो चुके हैं उनके कथन में अभी जल एवं संशय हीन विश्वास की चीख-पुकार करते रहते हैं और इस प्रकार मानवता के विकास को जड़ बनाने के दोषी हैं।

विश्वास और अंधविश्वास

विश्वास अंधविश्वास खतरनाक यह मस्तिष्क को मूड और मनुष्य को प्रतिक्रियावादी बना देता है जो मनुष्य अपने को एक यथार्थवादी होने का दावा करता है उसे समस्त प्राची रूडिगर विश्वासों को चुनौती देनी होगी प्रचलित मतों को तर्क की कसौटी पर करना होगा यदि वर्कर हार ना सके तो टुकड़े टुकड़े होकर गिर पड़ेगा तब मैं दर्शन की स्थापना के लिए उनको पूरा धराशाई कर के जगह साफ करना और पुराने विश्वासों की कुछ बातों का प्रयोग करके फिर से निर्माण करना ।

प्राचीन विश्वासों के ठोस पर पर प्रसन्न करने के संबंध में आश्वस्त मुझे पूरा विश्वास है कि एक चेतन परमात्मा का जो प्रकृति की गति का दिग्दर्शन एवं संचालन करता है कोई अस्तित्व नहीं है हम प्रकृति में विश्वास करते हैं, और समस्त प्रगतिशील आंदोलन का ध्य मनुष्य द्वारा अपनी सेवा के लिए प्रकृति पर विजय प्राप्त करना मांगते हैं इसको दिशा देने के पीछे कोई चेतन शक्ति नहीं है यही हमारा दर्शन है हम आशिकों से कुछ प्रश्न करना चाहते हैं।

आस्तिकों से कुछ प्रश्न

आपका विश्वास एक सर्वशक्तिमान सर्व व्यापक और ज्ञानी ईश्वर है जिसमें विश्व की रचना की तो कृपया करके हमें यह बताएं यह रचना उसने क्योंकि तब तो और संता हो से पूर्ण दुनिया असंख्य दुखो के शाश्वत अनंत गठबंधन ओं से जूझ रही है एक भी व्यक्ति तो पूरी तरह संतुष्ट नहीं है कृपया यह ना करें यही उसका नियम से बंधा है तो वह सर्वशक्तिमान ही नहीं वह भी हमारी ही तरह नियमों का दास है।

कृपा करके यह भी ना कहे कि यह उसका मनोरंजन है नीरो ने बस एक रोम जलाया था उसने बहुत थोड़ी संख्या में लोगों की हत्या की थी उसने तो बहुत थोड़ा दुख पैदा किया था अपने पूर्ण पूर्ण मनोरंजन के लिए और उसका इतिहास में क्या स्थान है उसे इतिहासकार किस नाम से बुलाते हैं सभी विषैले विशेषण उस पर बरसाए जाते हैं ,और उसकी निंदा के वाक्य से काले होते हैं नीरो एक कठोर दिल निर्दई दुष्ट था, एक चंगेज खान ने अपने आनंद के लिए कुछ हजार जाने ले ली और आज हम उसके नाम से घृणा करते हैं तब किस प्रकार तुम अपने ईश्वर को न्याय का रखवाला समझते हो ? हो उस शासक नीरो को जो हर दिन हर घंटे हर मिनट असंख्य दुख देता रहा और अभी भी दे रहा है फिर तुम कैसे उसके दुष्कर्म ओं का पक्ष लेने की सोचते हो जो चंगेज खान से प्रत्येक क्षण अधिक है क्या यह सब बाद में इन निर्दोष कष्ट सहने वालों को पुरस्कार और गलती करने वालों को दंड देने के लिए हो रहा है ठीक है ठीक है तुम कब तक उस व्यक्ति को उचित ठहराते रहोगे जो हमारे शरीर पर घाव करने का साहस इसलिए करता है कि बाद में मुलायम और आरामदायक मलहम लगाएगा ग्लेडिएटर संस्था के कृपया संस्थापक कहां तक उचित करते थे कि एक भूखे खूंखार शेर के सामने मनुष्य को फेंक दो कि यदि वह उसे जान बचा लेता है तो उसकी खूब देखभाल की जाएगी इसलिए मैं पूछता हूं कि उस चेतन परमात्मा ने इस विश्व और उसमें मनुष्य की रचना क्योंकि आन आनंद लूटने के लिए तब उसमें और नीरो  में क्या फर्क है

मुसलमानो और ईसाइयो से कुछ प्रश्न

तुम मुसलमानों और ईसाइयों तुम तो पूर्व जन्म में विश्वास नहीं करते तुम तो हिंदुओं की तरह बस यह तर्क पेश नहीं कर सकते कि प्रत्यक्ष व्यक्तियों के कष्ट उनके पूर्व जन्मों के कर्मों का फल है मैं तुमसे पूछता हूं कि उस सर्व शक्तिशाली ने शब्द द्वारा विश्व की उत्पत्ति के लिए 6 दिन तक क्यों परिश्रम किया और प्रत्येक दिन रात क्यों कहता है।  कि सब ठीक है उसे बुलाओ आज उसे पिछला इतिहास दिखाओ उसे आज की परिस्थितियों का अध्ययन करने दो हम देखेंगे कि क्या वह कहने का साहस करता है कि सब ठीक है कारावास की कॉल कोठरिया से लेकर झोपड़ियों की बस्तियों तक भूख से तड़पते लाखो इंसानों से लेकर उन शोषित मजदूरों से लेकर जो पूंजीवाद स्टाफ द्वारा खून चूसने की प्रिया को धैर्य पूर्वक उत्साह से देख रहे हैं तथा उस मानव शक्ति बर्बादी देख रहे हैं जिसे देखकर कोई भी व्यक्ति किसी तनिक भी सहज ज्ञान है  भय से  कांप उठेगा और अधिक उत्पादन को जरूरतमंद लोगों में बांटने के बजाय समुद्र में फेंक देना बेहतर समझने से लेकर राजाओं के उन मेलो तक जिनकी नींव मानव की हड्डियों पर पड़ी है उसको यह सब देखने दो और फिर कहे कि सब कुछ ठीक है क्यों और कहां से यही मेरा प्रश्न है तुम चुप हो ठीक है तो मैं आगे चलता हूं

हिन्दुओ से कुछ प्रश्न

तुम हिंदुओं तुम कहते हो कि आज जो कष्ट भोग रहे हैं यह पूर्व जन्म के पापी हैं और आज के उत्पीड़न हैं पिछले जन्म में साधु पुरुष थे अंतः सत्ता का आनंद लूट रहे हैं मुझे यह मानना पड़ता है कि आपके पूर्वज बहुत ही चालाक व्यक्ति थे उन्होंने ऐसे सिद्धांत गड़े जिनमें तर्क और अविश्वास के सभी प्रयासों को विफल करने की ताकत है न्याय शास्त्र के अनुसार दंड को अपराधी पर केवल तीन कारणों से उचित ठहराया जा सकता है

व है प्रतिकार डर तथा सुधार आज सभी प्रगतिशील विचार को द्वारा प्रतिकार के सिद्धांत की निंदा की जाती है भयभीत करने के सिद्धांत का भी अंत वही है सुधार करने का सिद्धांत ही केवल आवश्यक है और मानवता की प्रगति के लिए अनिवार्य है इसका दे अपराधी को योग्य और शांतिप्रिय नागरिक के रूप में समाज को लौट आना है किंतु यदि हम मनुष्य को अपराधी भी मान ले तो ईश्वर द्वारा उन्हें दिए गए दंड की क्या प्रकृति है तुम कहते हो उन्हें गाय, बिल्ली, पेड़ जड़ी बूटी, या जानवर बनाकर पैदा करता है तुम ऐसे 84 लाख दंडों को गिनाते हो  मैं पूछता हूं कि मनुष्य पर इस का सुधारक के रूप में क्या असर है तुम ऐसे कितने व्यक्तियों से मिले हो जो यह कहते हैं कि वह किसी पाप के कारण पूर्व जन्म में गधे के रूप में पैदा हुए थे ऐसा एक भी नहीं होगा अपने पुराणों से उदाहरण ना दो मेरे पास तुम्हारी पौराणिक कथाओं के लिए कोई स्थान नहीं है और फिर क्या तुम्हें पता है कि दुनिया में सबसे बड़ा पाप गरीब होना है गरीबी एक अभिशाप है।

यह एक दंड है मैं पूछता हूं कि दंड प्रक्रिया की कहां तक प्रशंसा करें जो अनिवार्य मनुष्य को और अधिक अपराध करने को बाध्य करें क्या तुम्हारे ईश्वर ने यह नहीं सोचा था कि उसको भी यह सारी बातें मानवता द्वारा पत्नियां कष्टों के झेलने की कीमत हर अनुभव से सीखनी थी तुम क्या सोचते हो किसी गरीब या अनपढ़ परिवार जैसे एक चमार या मेहता के यहां पैदा होने पर इंसान का क्या भाग्य होगा क्योंकि वह गरीब है इसलिए पढ़ाई नहीं कर सकता वह अपने साथियों से तिरस्कृत एवं पर्याप्त रहता है जो ऊंची जाति में पैदा होने के कारण अपने को अच्छा समझते हैं

उसका अज्ञान उसकी गरीबी तथा उससे किया गया व्यवहार उसके दिल को समाज के प्रति निष्ठुर बना देता है यदि कोई पाप करता है तो उसका फल कौन भागेगा ईश्वर वह स्वयं या समाज के मनीष जी और उन लोगों के दर्द के बारे में क्या होगा जिन्हें ब्राह्मणों ने जानबूझकर अज्ञानी बनाए रखा तथा जिनको तुम्हारी ज्ञान की पवित्र पुस्तकों वेदों के कुछ वाक्य सुन लेने के कारण कान में पिंगले शीशे की धारा सहन करने की सजा भुगतनी पड़ती थी।

यदि वह कोई अपराध करते हैं तो उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा और उनका प्रहार कौन चाहेगा मेरे प्रिय दोस्तों यह सिद्धांत विशेष अधिकार युक्त लोगों के अविष्कार हैं यह अपनी हंसी आई हुई शक्ति पूंजी तथा उच्चता को इन सिद्धांतों के आधार पर सही ठहराते हैं अपटन सिनक्लेयर ने लिखा था कि मनुष्य को बस अमृत में विश्वास दिला दो और उसके बाद उसकी सारी संपत्ति लूट लो बिना कुछ कहे , इस कार्य में तुम्हारी सहायता करेगा धर्म के उपदेशक तथा सत्ता के स्वामित्व के गठबंधन से ही जेल , फांसी, कोड़े  यह सिद्धांत  उपजते है।

हिन्दुओ से उनके विश्वास को लेकर कुछ तर्क वितर्क

मैं पूछता हूं तुम्हारा सर्व शक्तिशाली ईश्वर हर व्यक्ति को क्यों नहीं उस समय रोकता जब वह कोई पाप या अपराध कर रहा होता है यह तो बहुत आसानी से कर सकता है उसने क्यों नहीं लड़ाकू राजाओं की लड़ने की उग्रता को समाप्त किया और इस प्रकार विश्वयुद्ध द्वारा मानवता पर पड़ने वाली विपत्तियों से उसे बचाया उसने अंग्रेजों के मस्तिष्क में भारत को मुक्त कर देने की भावना क्यों नहीं पैदा की वह क्यों नहीं पूजी पतियों के दिल में क्यों नहीं उत्साह भर देता कि वह उत्पादन के साधनों पर अपना व्यक्तिगत संपत्ति का आधा त्याग दें और इस प्रकार केवल संपूर्ण श्रमिक समुदाय वरन समस्त मानव समाज को पूंजीवादी बेड़ियों से मुक्त करे।

आप समाजवाद की व्यवहारिकता पर तर्क करना चाहते हैं मैं इसे आपके सर्व शक्तिमान पर छोड़ देता हूं कि वह लागू करें जहां तक सामान्य भलाई की बात है लोग समाजवाद के गुणों को मानते हैं वह इसके व्यवहारिक ना होने का बहाना लेकर इसका विरोध करते हैं परमात्मा को आने दो और वह चीज को सही तरीके से करते अंग्रेजों की हुकूमत यहां इसलिए नहीं है कि ईश्वर चाहता है बल्कि इसलिए है कि उनके पास ताकत हैं और हम मैं उनका विरोध करने की हिम्मत नहीं है वह हमको अपना प्रभुत्व में ईश्वर की मदद से नहीं रखते हैं बल्कि बंदूक राइफल लो बम और गोलियों पुलिस और सेना के सहारे यह हमारी उदासीनता है कि वह समाज के विरुद्ध सबसे निंदनीय अपराध एक राष्ट्रीय का दूसरे राष्ट्र द्वारा अत्याचार पूर्ण शोषण सफलतापूर्वक कर रहे हैं कहां है इसमें क्या वह मनुष्य जाति के इन कष्टों का मजा ले रहा है ? एक नीरो एक चंगेज़  उनका नाश हो।

क्या तुम मुझसे पूछते हो कि विश्व की उत्पत्ति तथा मानव की उत्पत्ति की व्याख्या कैसे करता हूं ठीक है मैं तुम्हें बताता हूं चार्ल्स डार्विन ने इस विषय पर कुछ प्रकाश डालने की कोशिश की है उसे पढ़ो या एक प्रकृति की घटना है विभिन्न पदार्थों के निहारिका के आकार में आकाश में मिश्रण से पृथ्वी बनी कल इतिहास देखो इसी प्रकार की घटना से जंतु पैदा हुए और लंबे दोनों में मानव डरविन जीव की उत्पत्ति पढ़ो तदुपरांत सहारा विकास मनुष्य द्वारा प्रकृति के लगातार विरोध और उस पर विजय प्राप्त करने की चेष्टा से हुआ घटना की संभावना सबसे सुक्ष्म  व्याख्या है।

तुम्हारा दूसरा तर्क यह हो सकता है कि क्यों एक बच्चा अंधा लंगड़ा पैदा होता है क्या उसके पूर्व जन्म में किए गए कार्यों का फल नहीं है जीव विज्ञान वक्ताओं ने इस समस्या का वैज्ञानिक समाधान निकाल लिया तो लोग उसमें विश्वास करने लगे मेरा उत्तर सरल और सीधा है जिस प्रकार प्रेतो तथा दुष्ट आत्माओं में विश्वास करने लगे अंतर केवल इतना है कि ईश्वर में विश्वास विश्वव्यापी हैं और दर्शन अत्यंत विकसित इसकी उत्पत्ति का स्वयं उन शोसको की प्रतिभा को है जो परमात्मा के अस्तित्व का उपदेश देकर लोगों को अपने प्रभुत्व में रखना चाहते थे तथा उनसे अपनी विशिष्ट स्थिति का अधिकार है अनुमोदन चाहते थे सभी धर्म संप्रदाय और ऐसी अन्य संस्थाएं अन्य में कठोर  और शोषक संस्थाओं व्यक्तियों तथा वर्गों की समर्थक हो जाती है राजा के विरुद्ध विद्रोह हर धर्म में सदैव ही पाप रहा है।

कुछ और तर्क वितर्क

मनुष्य की सीमाओं पर उसकी दुर्लभ पिता व दोष को समझने के बाद परीक्षा की गलियों में मनुष्य को बहादुरी से सामना करने के लिए उत्साहित करने सभी खतरो का कुरुक्षेत्र के साथ झेलने तथा संपन्नता एवं ऐश्वर्या में उसके विस्फोट को बांधने के लिए ईश्वर की काल्पनिक अस्तित्व की रचना की गई अपने व्यक्तिगत नियमों तथा अभी अभी भाव किए उदारता से पूर्ण ईश्वर की बढ़ा चढ़ाकर कल्पना है चित्रण किया गया जब उसकी उम्र तथा व्यक्तिगत नियमों की चर्चा होती है तो उसका उपयोग एक डर दिखाने वाले के रूप में किया जाता है ताकि कोई मनुष्य समाज के लिए खतरा ना बन जाए। 

उसकी अभिभावक गुणों की व्याख्या होती है तो उसका उपयोग एक माता-पिता भाई-बहन दोस्त तथा सहायक की तरह किया जाता है जब मनुष्य अपने सभी दोस्तों द्वारा विश्वासघात तथा त्याग देने से अत्यंत क्लेश में हो तब इस विचार से संतुष्टि मिल सकती है की एक सदा सच्चा दोस्त उसकी सहायता करने को है उसको सहारा देगा तथा सर्वशक्तिमान है और कुछ भी कर सकता है वास्तव में आदि काल में यह समाज के लिए उपयोगिता पीड़ा में पड़े मनुष्य के लिए ईश्वर की कल्पना उपयोगी होती है समाज को इस विश्वास के विरुद्ध लड़ना होगा मनुष्य जब अपने पैरों पर खड़ा होने का प्रयास करता है तथा यथार्थवादी बन जाता है तब उसे श्रद्धा को एक ओर फेंक देना चाहिए एक और उन सभी कष्टों परेशानियों के साथ डटकर सामना करना चाहिए जिनमें परिस्थितियों उसमें पटक सकती हैं।

भगत सिंह के आखरी अलफाज नास्तिकता को लेकर

मेरे दोस्त यही स्थिति मेरी आज यह मेरा अहंकार नहीं है यह मेरे सोचने का तरीका है जिसने मुझे नास्तिक बनाया ईश्वर में विश्वास और रोज-रोज की प्रार्थना को मैं सबसे स्वार्थी और गिरा हुआ काम मानता हूं मैं उन नास्तिकों के बारे में पढ़ा हूं जिन्होंने सभी विपदाओ का बहादुरी से सामना किया आखिर में मैं भी एक पुरुष की भांति , अंतिम घड़ी पर सिर ऊंचा किए खड़ा रहना चाहता हूं हमें देखना है कि मैं कैसे निभा पाता हूं मेरे एक दोस्त ने मुझे प्रार्थना करने को कहा जब मैंने उसे नास्तिक होने की बात बताई तो उसने कहा अपने अंतिम दिनों में तुमसे बात करने लगोगे मैंने कहा नहीं प्यारे दोस्त ऐसा नहीं होगा मैं इसे अपने लिए तथा भ्रष्ट होने की बात समझता हूं स्वार्थी कारणों से मैं प्रार्थना नहीं करूंगा पाठकों और दोस्तों का यह अहंकार है , अगर है तो मैं स्वीकार करना चाहता हूं ।