अकबर के शासन का सूर्योदय और पानीपत की दूसरी लड़ाई

दिल्ली के सम्राट का अंत और जलालुद्दीन अकबर के शासन का सूर्योदय

जैसा कि इतिहास में निरंतर शब्दों में प्रस्तुत किया जाता है कि पानीपत की जमीन पर तीन घमासान लड़ाइयां हुई, और मुगल साम्राज्य के सम्राटों ने जिस में बाबर हुमायूं तथा उनके पुत्र अकबर का नाम मलिक किया गया है।

पानीपत की दूसरी लड़ाई का भी एक अलग किस्म का ऐतिहासिक किस्सा है माना जाता है कि हुमायूं की मृत्यु के बाद अकबर बिल्कुल अकेला पड़ गया था और उसकी कम उम्र होने के कारण अकबर के साम्राज्य तथा उसके संरक्षक को समझ नहीं आ रहा था कि अब हम अपने सम्राट का चयन किस प्रकार करें इसके पीछे कारण यह था कि अकबर की उम्र केवल 13 साल की थी। अकबर अभी सिंहासन संभालने के योग्य नहीं था क्योंकि वह एक छोटा बच्चा ही था।

हुमायूं की मृत्यु 24 जनवरी 1556 को हुई। पिता की मृत्यु के समय अकबर केवल 13 साल के एक छोटे बच्चे थे लेकिन सब कुछ अस्त-व्यस्त के कारण अकबर को दिल्ली का सिंहासन सौंप दिया गया। सिंहासन सौंपने के बाद भी अकबर काबुल तथा गांधार और दिल्ली के कुछ सीमित हिस्सों तक ही अपना शासन कायम करने योग्य था

बैरम खाँ कौन था ?

बैरम खाँ हुमायूं तथा अकबर के दौर का संरक्षक था, किसी भी युद्ध तथा किले में किसी भी प्रकार की सुरक्षा बैरम खाँ के द्वारा ही निश्चित किया जाता था तथा अकबर और हुमायूं के वफादार के रूप में बैरम खाँ को इतिहास में जाना जाता है। हुमायूं की मृत्यु के बाद सारी जिम्मेदारी बैरम खाँ के सिर पर आ पड़ी अकबर की उम्र केवल 13 वर्ष की होने के कारण बैरम खाँ ने उसका रखरखाव किया तथा उसका राज्याभिषेक होने के बाद भी उसे युद्ध में जाने तथा किले से बाहर निकलने की अनुमति बिल्कुल भी नहीं दी गई।

बैरम खाँ ने अकबर के बड़े होने तक अकबर को 5 हजार सैनिको के एक सुरक्षित गोलार्ध में रखा। अकबर को अपनी कम उम्र में युद्ध में हिस्सा लेने की अनुमति भी बैरम खाँ से लेनी पड़ती थी लेकिन बैरम खाँ अकबर की आयु को देखकर उसे कदापि आज्ञा नहीं देता था।

म्यान से निकली तलवार को इस बात का ज्ञान नहीं होता की उसका इस्तेमाल किस धर्म के व्यक्ति विशेष के लिए किया जाएगा

हेमचंद्र विक्रमादित्य उर्फ हेमू

हेमचंद्र विक्रमादित्य उर्फ हेमू

हेमचंद्र विक्रमादित्य उर्फ हेमू हरियाणा के रेवाड़ी क्षेत्र के निवासी थे, उन्होंने अपने जीवन में लगभग 22 युद्ध जीते थे तथा अनुभवी सम्राटों को पराजित किया था। विक्रमादित्य उर्फ हेमू अपने साहस और अपनी महानता के लिए इतिहास में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं।

हेमचंद्र विक्रमादित्य दिल्ली के आखिरी सम्राट थे जोकि अकबर के शासन से पहले का वक्त था। हेमचंद्र विक्रमादित्य नमक के व्यापार में बहुत ही निपुण थे तथा पश्चिमी तट से लगने वाले सभी साम्राज्य के सम्राट उनसे अपना आयात निर्यात तथा संबंध मधुर किस्म के रखा करते थे।

पानीपत की दूसरी लड़ाई

हुमायूं की मृत्यु के पश्चात हेमू को जैसे ही हिमायू की जानकारी मिली तो उन्होंने सोचा कि मैं अब पूरी तरह आजाद हूं तथा पूरे भारत पर अपना कब्जा जमा सकता हूं लेकिन हेमचंद्र का यह सोचना कुछ प्रकार तक सही साबित नहीं हुआ।

हेमू ने अपनी सेना को बढ़ाने का प्रयास किया तथा अफगानों से मदद भी मांगी तथा उन्होंने आगरा और अन्य स्थानों पर भी युद्ध का आरंभ कर दिया कई स्थानों से हेमू की सेना ने अकबर तथा हुमायूं की सेना को खदेड़ कर रख दिया जिसका कारण पानीपत का दूसरा युद्ध बना।

पानीपत की दूसरी लड़ाई का आरंभ

पानीपत की दूसरी लड़ाई इतिहास में दिल्ली के राजा विक्रमादित्य उर्फ हेमू और जलालुद्दीन अकबर के बीच हुई घमासान युद्ध की याद है। जलालुद्दीन अकबर एक रोज काबुल में अपने शासन का चुनाव प्रचार कर रहे थे उसी क्षण अकबर की नजर दिल्ली की और पड़ी और उसके मन में आया कि मुझे अपना शासन दिल्ली में पूरी तरह से विस्तृत करना है ताकि मैं पूर्ण साम्राज्य का सम्राट बन जाऊं।

अकबर के पास बहुत ही अनुभवी सेना तथा घुड़सवार और कई हजार हाथियों की संख्या थी। हेमचंद्र विक्रमादित्य के पास बहुत ही सीमित सैनिकों की संख्या थी अकबर के मुकाबले तथा अफगान के शासकों ने भी हेमचंद्र विक्रमादित्य का साथ पानीपत की दूसरी लड़ाई मे दिया, जिसके कारण हेमचंद्र विक्रमादित्य की सेना का मनोबल सातवें आसमान पर पहुंच गया और उन्होंने अकबर की सेना का डटकर सामना किया।

जलालुद्दीन अकबर और हेमचंद्र विक्रमादित्य आमने-सामने

राजा हेमचंद्र उर्फ हेमू ने अकबर की सेना का सामना बहुत खूब तरीके से कर रहे थे लेकिन ना जाने कहां से अचानक एक उड़ता हुआ तीर आकर सीधा हेमचंद्र की आंखों में लग गया जिसके कारण उन्हें बहुत ही क्षति पहुंची, उन्हें साफ दिखना भी बंद हो गया लेकिन हेमू ने हिम्मत नहीं हारी उन्होंने अपने साहस को दिखाते हुए अपनी घायल आंख से जब तक उनसे युद्ध में लड़ा गया उन्होंने अपनी जी जान लगा दी।

लेकिन एक घायल राजा अपनी एक आंख को लेकर कब तक लड़ता कुछ क्षण बाद हेमचंद्र अचानक जमीन पर गिर पड़े और बेहोश हो गए । हेमू को घायल देखकर उनकी सेना अचानक सेना घबरा गई और उन्होंने अपना मनोबल तोड़ दिया और उनकी सेना के बीच भगदड़ मच गई जिसके कारण अकबर की सेना ने हेमचंद्र की सेना के सैनिकों को बुरी तरह से रोंद कर रख दिया और उनका वध कर दिया तथा सभी के सर कलम कर दिए गए।

सम्राट होने का अर्थ यह नहीं कि आप धार्मिक आधार पर किसी की आजादी का हनन करें। सभी को साम्राज्य में धार्मिक आजादी प्राप्त होनी चाहिए

मोहम्मद जलालुद्दीन अकबर

अकबर के सामने घायल हेमू की पेशी

पानीपत की जमीन पर युद्ध हारने के बाद अकबर के घायल सैनिक हेमचंद्र विक्रमादित्य को पकड़कर अकबर के कदमों में लाकर पटक देते हैं तथा बैरम खाँ भी वहीं पर मौजूद होता है जो हुमायूं तथा अकबर का संरक्षक के रूप में कार्यरत था।

बैरम खाँ बहुत ही क्रूर तथा निर्दई इंसान माना गया है इतिहास में, जैसे ही वह घायल हेमू को अकबर के कदमों में पड़ा हुआ देखता है उसका खून खौल उठता है तथा वह अपने सम्राट अकबर से कहता है सम्राट इंतजार करें बिना इस हेमचंद्र विक्रमादित्य का सर कलम कर दीजिए।

अकबर अपनी म्यान में से तलवार निकालकर हेमचंद्र विक्रमादित्य की ओर बढ़ते हैं तथा उसकी गर्दन पर तलवार रख कर उसका सर उठाते हैं अकबर देखते हैं कि हेमचंद्र विक्रमादित्य की एक आंख पूरी तरह घायल है तथा वह अधमरा की स्थिति में अभी है अकबर पलटते हुए बैरम खाँ से कहता है खाँ चाचा चाहे मैं कितना भी बड़ा सम्राट बन जाऊं लेकिन मैं कभी घायल इंसान पर अपना जोर नहीं दिखा सकता।

अकबर का दयालु स्वभाव देखकर बैरम खाँ गुस्से से लाल हो जाता है तथा अकबर से कहता है सम्राट इसी राजा ने आपके साम्राज्य को खंडित करने का प्रयास किया था और आप इसके बारे में ही ऐसी दयालुता दिखाएंगे तो यह उचित नहीं है आप तुरंत अपनी तलवार से इसका सर कलम कर दीजिए आसपास खड़े सैनिकों ने भी बैरम खाँ की बात का समर्थन किया लेकिन अकबर ने ऐसा करने से मना कर दिया फिर गुस्साए बैरम खाँ ने अपने म्यान में से तलवार निकालकर राजा विक्रमादित्य उर्फ हेमू का सर एक ही बार में धड़ से अलग कर दिया, और यहां हेमू का अंत हो जाता है।

हेमचंद्र विक्रमादित्य की मृत्यु के पश्चात

जैसे ही हेमू की सेना हेमचंद्र को घायल देखती है सारी सेना तितर-बितर हो भागने लगती है इसी बात का फायदा उठाकर अकबर की सेना हेमचंद्र विक्रमादित्य की सेना के सैनिकों का सर धड़ से अलग कर देती है एक एक करके। ऐतिहासिक रूप से कहा जाता है कि बैरम खाँ ने राजा विक्रमादित्य का सर धड़ से अलग कर के काबुल में भिजवा दिया और उसका क्या हुआ धड़ दिल्ली के 1 दरवाजे पर लटका दिया गया। भारतवर्ष के राजा हेमचंद्र विक्रमादित्य की हत्या हुई बैरम खां के द्वारा वहां पर उस राज्य के लोगों ने जो हेमू के समर्थक थे, उन्होंने हेमू नामक स्मारक बनवाए तथा उसकी पूजा भी करते करते हैं।

किसी भी साम्राज्य का सम्राट उसकी योग्यता के अनुसार चयनित होता है ना कि धर्म के आधार पर

हेमचंद्र विक्रमादित्य