अनुसूचित जातियां तथा जनजातियां की संवैधानिक परिभाषा

अनूचित जनजाति क्या होती है  ?

आमतौर पर जाति की कोई परिभाषा विस्तार से कहीं पर भी निश्चित नहीं की गई है कि जाति या जनजाति की कोई ऐसी परिभाषा नहीं है क्योंकि भारतवर्ष अनेक प्रकार की भाषा ,जाति ,संस्कृति, धर्म ,क्षेत्रीय, विविधताओं से भरा एक विशाल देश है।

किसी भी जनजाति को इस आधार पर परिभाषित नहीं किया जा सकता क्योंकि भारत के अंदर सभी धर्म जाति के लोगों की अलग-अलग विशेषताएं पाई जाती है। भारत के अलग-अलग हिस्सो में ऐसे अनेक प्रकार के समूह रहते हैं जो आज भी सभ्यता या विकास से दूर जंगल, पहाड़,पठार, जैसे पर्यावरण, में अपना रहन सहन कर जिन्हें हम आम तौर पर आदिवासी, वनवासी,तथा जनजाति के आधार से उनकी पहचान करते हैं।

डॉक्टर बीएम मजूमदार

के अनुसार जनजाति परिवारों या फिर परिवारों के समूह का एक गुठ होता है जिनका एक सामान्य नाम होता है जिनके सदस्य एक भूभाग तथा एक सीमित क्षेत्र में एक जैसी भाषा का प्रयोग करते हैं तथा विवाह ,उद्योग ,व्यवसाय, के विषय में कुछ विषयों का पालन करते हैं और एक निश्चित और उपयोगी संसाधनों का आदान प्रदान करके व्यवस्था का विकास करते हैं।  

भारत में किसी जन जाति को अनुसूचित जनजातियों का दर्जा देने का अधिकार केवल भारत के राष्ट्रपति को ही होता है अनुसूचित शब्द का प्रयोग या फिर हम कह सकते हैं अनुसूचित जातियों शब्द का प्रयोग पहली बार सन 1929 में किया गया था जोकि साइमन कमीशन ने प्रस्तावित किया था जिसे 1947 में सविधान ने भी स्वीकार किया है।

अनुसूचित जनजातियों के लिए संवैधानिक प्रावधान कौन-कौन से है।

भारतीय संविधान के भाग 10 में तथा अनुसूची 5 व 6 में इसका विस्तार पूर्वक विवरण दिया गया है जो अनुसूचित और जनजाति के क्षेत्र के प्रशासन व नियंत्रण के बारे में कुछ प्रावधान करते हैं।

अनुच्छेद 244- अनुसूचित क्षेत्रों और जनजाति क्षेत्रों का प्रशासन।  

पांचवी अनुसूची के उपबंध असम मेघालय त्रिपुरा मिजोरम राज्यों से भिन्न किसी राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण के लिए लागू होंगे.

अनुच्छेद 244A – इस अनुच्छेद में असम के कुछ जनजाति क्षेत्रों को सम्मिलित करने वाला एक स्वशासी राज्य बनाने और उसके लिए स्थानीय विधानमंडल या मंत्रिपरिषद या दोनों का सृजन करने का प्रावधान करता है।

अनुच्छेद 342

राष्ट्रपति, करने के पश्चात के किसी राज्य तथा संघ राज्य क्षेत्र के संबंध में और जहां वह राज्य स्थित है वहां उसके राज्यपाल से परामर्श करने के पश्चात लोक अधिसूचना द्वारा जनजातियों या जनजाति समुदाय अथवा जनजातियों या जनजाति समुदाय के भागों को परिभाषित कर सकेगा जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिए यथास्थिति उस राज्य या संघ क्षेत्र में अनुसूचित जनजातियां समझ आ जाएगा. आसान शब्दों में अगर समझे, तो जनजातियों वाले क्षेत्र में राष्ट्रपति अपने राज्यपाल को नियुक्त करते हैं वहां के जन के लिए तथा वहां पर भारतीय संविधान के अनुसार ही कानून तथा नियमों का पालन करना होता है।  

इस उपबंध में संसद को यह शक्ति प्रदान की गई है कि वह किसी जनजाति या जनजाति वाले समुदाय को और किसी जनजातीय जनजाति समुदाय के भाग को खंड 1 के अधीन निकाली गई अधिसूचना में सम्मिलित कर अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल कर सकेगी या फिर उसमें से अपवर्जित मतलब कि अलग कर सकेगी।

अनुच्छेद 330- लोकसभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए थानों का आरक्षण प्रदान किया गया है भारतीय संविधान के अनुसार।  

अनुच्छेद 332- राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के के लिए अनोखा आरक्षण प्रदान किया गया है।

अनुच्छेद 335- सेवाओं और उत्पादों के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष प्रकार के प्रावधान भारतीय संविधान में सम्मिलित किए गए हैं।  

अनुच्छेद 338- राष्ट्रीय अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति आयोग इस आयोग में एक अध्यक्ष एक उपाध्यक्ष व अन्य पांच सदस्य की व्यवस्था होगी।

अनुच्छेद 339- अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के बारे में संघ का नियंत्रण।  

अनुच्छेद 46- अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों और दुर्बल वाले वर्गों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि।  

अनुच्छेद 15(4) – इस अनुच्छेद के अंतर्गत राज्य को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिए या अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगा।

अनुच्छेद 16(4) क – इस पर्याप्त नहीं है राज्य के अधीन सेवाओं में किसी वर्ग या वर्गों के पदों या विशेष दर्जा देने के मामले में आरक्षण के लिए बंद करने का अधिकार होगा।