आजादी के समय भारत और पाकिस्तान के संबंध

भारत और कश्मीर के बीच संबंध

भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध। 

आजादी से पहले और आजादी के बाद भी आज भी पाकिस्तान और भारत को एक अलग नजरिए से देखा जाता है। भारत के विभाजन के पश्चात भारत और पाकिस्तान के संबंधों का इतिहास कुछ विश्लेषण समस्याओं और बहुत से विवादों की समीक्षा के माध्यम से किया जा सकता है।  जिन्होंने दोनों देशों के युद्ध के दौरान और बाद में भी काफी तनावपूर्ण आक्रमक और संघर्षपूर्ण संवादों से जकड़े रखा है। प्रतिकूल संबंधों की परिणति अब तक 4 युद्धों के रूप में हो चुकी है और भारत अभी भी पाकिस्तान द्वारा कश्मीर में चलाए जा रहे उस छद्म युद्ध की चुनौती का सामना करता आ रहा है। 

भारत और पाकिस्तान के संबंधों में एक तनावपूर्ण विवाद कश्मीर समस्या भी शामिल है जिसका उद्देश्य कश्मीर को शेष भारत से अलग करना है तथा जनता की नजर में और खासकर हमारी सेनाओं की नजर में पाकिस्तान की पहचान अभी भी एक शत्रु के रूप में की जा रही है हालांकि इतिहास और संस्कृति तथा भाषा धर्म तथा भूगोल के मामले में दोनों देशों के बीच बहुत प्रकार की समानताएं हैं।

समानताएं तथा विचार बराबर ना होना। 

दोनों देशों की एक दूसरे के प्रति आस्था मति के कारण में संवाद हीनता परस्पर आशंका की स्थिति और इन आकांक्षाओं को लगातार बढ़ावा देने वाले कदमों को बनाया जा सकता है पहले पाकिस्तान की आकांक्षाओं को समझ लेना ही हमारे लिए बेहतर होगा। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा विभाजन के विरोध के फल स्वरुप मुस्लिम लीग के समक्ष जो चुनौतियां पैदा हुई थी उसकी कड़वी स्वीकृति अभी भी पाकिस्तान के मन में समाई हुई है।

जिसका नतीजा यह हुआ कि मुस्लिम लीग अपनी आकांक्षाओं के मुताबिक भोगोलिक परिक्षेत्र में पाकिस्तान का गठन करना चाहती थी उनके इच्छा और विचारों द्वारा वह ना हो सका इतिहास की विडंबनाओ में से एक यह है कि पाकिस्तान में रहने वाले काफी समुदाय के लोग अभी भी दो राष्ट्रों के सिद्धांत से सहमत नहीं है। 

मोहम्मद अली जिन्ना और दो राष्ट्रीय सिद्धांत

पाकिस्तान के पक्ष में खड़े किए गए आंदोलन की मुख्य ताकत बंगाल और उत्तर मध्य भारत के मुस्लिम ही थे यह समर्थन भी मुस्लिम जनता की ओर से नहीं था बल्कि मुस्लिम अभिजात्य वर्ग का था मोहम्मद अली जिन्ना को तब हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक माना जाता था जब तक कि महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता के रूप में उनकी छवि को नुकसान पहुंचाया। 

पाकिस्तान का अभी यहीं दृष्टिकोण है कि लॉर्ड माउंटबेटन और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की मिलीभगत ने एक ऐसा पाकिस्तान बनने की राह में अवरोध पैदा किया जहां भारत की सारी मुस्लिम आबादी रहे यह कड़वाहट आज पाकिस्तानी सत्ता और उसकी संरचना की मानसिकता पर मिली हुई है। 

जम्मू कश्मीर हैदराबाद और जूनागढ़ में भारत के कठोर कदमों ने इस कटुता को बढ़ाने का ही काम किया इससे भी महत्वपूर्ण यह कि इन कदमों ने ऐसी आशंका पैदा कर दी कि भारत के विभाजन के प्रभाव को समाप्त करने के लिए पाकिस्तान की वर्तमान स्थिति को पूरी तरह नष्ट कर देगा।  चाहे उसे तोड़कर अथवा उसके सभी प्रांतों का वापस उस हिंदू योजना में मिलाकर जिसे पाकिस्तानियों ने अखंड भारत का नाम दिया था। 

सामाजिक संसाधनों के वितरण और विदेशी मुद्रा भंडार पर भारत के पक्ष में पाकिस्तान की इस आशंका को मजबूत किया कि भारत की योजनाएं विघटनकारी हैं तथा दोनों देशों के आकार आबादी और संसाधनों में विभिन्न प्रकार की आसमानता ने इन आकांक्षाओं में इंधन का काम किया।

कश्मीर विवाद

विभाजन की शुरुआत समस्या के अलावा भी पाकिस्तान की इच्छा के विपरीत जूनागढ़ हैदराबाद और कश्मीर के प्रांतों का भारत में विलय तथा रावी, सतलुज और व्यास के जल बंटवारे की समस्या भी बहुत ही महत्वपूर्ण मानी गई जिसका समाधान 19 सितंबर 1960 के दोनों देशों के बीच हुए एक शांतिपूर्ण समझौते से  सुलझ गया। 

विभाजन के दौरान कश्मीर के अंदर मुस्लिम आबादी का कुछ खास वर्चस्व देखा गया था और वहां एक हिंदू राजा महाराजा हरि सिंह का शासन स्थापित था 15 अगस्त 1947 को मिली आजादी के पहले और उसके ठीक बाद भी उन्होंने राज्य के परिग्रहण संबंधी कोई भी निर्णय नहीं लिया महाराज की योजना थी कि वह अपने राज्य को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित करेंगे।

महाराजा हरि सिंह के शासन के दौरान महाराजा हरि सिंह ने एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित करने की घोषणा की लेकिन इसका फायदा सबसे ज्यादा पाकिस्तान ने उठाया और उसने उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत के कबीलाई लोगों की मदद से राज्य पर हमला बोल दिया तथा 22 अक्टूबर 1947 को किए गए इस हमले के सिर्फ 5 दिन के भीतर ही हमलावरों ने श्रीनगर से 25 मील दूर बारामुला तक आ पहुंचे। पाकिस्तान के आक्रमण से बचने के लिए महाराजा हरि सिंह ने भारत से सहायता लेने का निर्णय किया। भारत सरकार से विनती की कि राज्य की रक्षा करने के एवज में परिग्रहण के कागज पर दस्तखत करने को तैयार है।

27 अक्टूबर 1947 तक जम्मू कश्मीर के परिग्रहण की प्रक्रिया पूरी हो गई और सेना को हमलावरों से क्षेत्र खाली कराने की अनुमति दे दी गई जम्मू-कश्मीर का परी ग्रहण करने के बाद भारत ने कहा था कि राज्य को हमलावरों से खाली कराने के बाद जनता की क्या राय है इसे सुनिश्चित किया जाएगा तथा पाकिस्तान ने इस परीग्रहण को स्वीकार नहीं किया और इसे भारत का आक्रमण माना। 

उसी दौरान पाकिस्तान ने आक्रमणकारियों द्वारा कब जाएगा ए परिक्षेत्र में आजाद कश्मीर नामक सरकार की स्थापना कर दी इस मुद्दे पर भारत ने अनुच्छेद 35 के अंतर्गत सुरक्षा परिषद का दरवाजा खटखटाया वास्तव में जम्मू-कश्मीर की जनता जाने के लिए जवाहरलाल नेहरू की सरकार द्वारा जनमत संग्रह करवाने का निर्णय एक ऐसी गंभीर गलती थी पाकिस्तान जिसका फायदा उठाकर अभी तक इस विवाद को खींचने में कामयाब रहा। 

सुरक्षा परिषद ने इस मामले पर कई फैसले लिए सबसे पहले 20 जनवरी 1948 को एक तीन सदस्यीय आयोग का गठन किया गया बाद में इसका विस्तार होता रहा और इसका नामकरण किया गया भारत और पाकिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्रीय आयोग ने दोनों देशों के प्रतिनिधियों से मुलाकात और जांच के बाद 11 दिसंबर 1948 को अपनी रिपोर्ट साझा की इस रिपोर्ट में दोनों देशों के बीच कटुता को समाप्त करने के लिए और जनमत संग्रह के संबंध में निम्नलिखित सिफारिशें की गई सबसे पहले सिफारिश संघर्ष विराम के बाद पाकिस्तान अपनी सैन्य टुकड़ियों जम्मू कश्मीर से जल्द से जल्द हटाए तथा उन कबीलाई और पाकिस्तानी नागरिकों को वापस बुलाए जो जम्मू कश्मीर के निवासी नहीं है। 

दूसरे पाकिस्तानी टुकड़ियों द्वारा खाली किए गए क्षेत्रों का प्रशासन आयोग की देखरेख में स्थानीय अधिकारी करेंगे तथा तीसरे इन दोस्तों के पूरी हो जाने और भारत को इसकी सूचना दिए जाने के बाद वह अपनी अत्यधिक सेना टुकड़िया वहां से हटा ले आखरी सिफारिश थी कि अंतिम समझौते के अंदर भारत सीमित संख्या में वहां अपने टुकड़े स्थापित करें जो सिर्फ कानून और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए पर्याप्त हो। 

कैसे बना कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग

शुरुआत के दौर में पाकिस्तान ने आनाकानी बहुत की लेकिन इन प्रस्ताव को ना चाहते हुए भी मंजूर कर लिया और दोनों देशों के सेना के प्रमुख अधिकारियों ने जनवरी 1949 को एक संघर्ष विराम पर दस्तखत किए उसके पश्चात युद्ध समाप्त हुआ और संघर्ष विराम लागू हो गया यहां यह बात ध्यान देने वाली थी कि संघर्षविराम एन उस वक्त हुआ जब भारतीय सेना ने घुसपैठियों को पूरी तरीके से बाहर खदेड़ने और पूरे राज्य को मुक्त करा पाने की स्थिति में भरपूर थी।

जिस जगह पर युद्ध समाप्त हुआ था वहीं पर संघर्षविराम रेखा जिसे आज के दौर में नियंत्रण रेखा का नाम दिया गया है उसे खींच दिया गया 27 जुलाई 1949 को कराची में संघर्ष विराम रेखा पर एक और समझौता हुआ इसके मुताबिक जम्मू कश्मीर 30,000 वर्ग मील का क्षेत्र पाकिस्तान में ही रह गया जिसे पाकिस्तान आज के दौर में आजाद कश्मीर पुकारता है इसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने कई आयोगों का गठन किया और प्रस्ताव पारित हुए लेकिन इनमें से किसी से भी कश्मीर समस्या का हल आज तक नहीं हो पाया। 

वयस्क मतदान के आधार पर चुनी गई एक संविधान सभा ने फरवरी 6 साल 1954 को भारत सरकार द्वारा राज्य के परिग्रहण पर मुहर लगा दी। 19 नवंबर 1956 को स्वीकृत राज्य के संविधान में जम्मू कश्मीर को भारत का एक अभिन्न अंग माना गया भारत का पक्ष था कि सीधे चुनी गई कश्मीर की संविधान सभा द्वारा राज्य के परिग्रहण की अभी पुष्टि से राज्य की जनता की इच्छा का सम्मान किया गया है भारत ने इस पर ग्रहण को जनवरी 26 साल 1957 आखरी मंजूरी दे दी ।

कश्मीर मुद्दे को पाकिस्तान द्वारा कई बार संयुक्त राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर समय-समय पर कश्मीर को पाकिस्तान का अंग बनाए जाने के पीछे उसका तर्क वहां की बहु संख्या आबादी की समान धार्मिकता तथा समान विचारों वाली जनसंख्या है। पाकिस्तान के अनुसार कश्मीर में मुस्लिम धर्म के लोगों का एक विशाल समूह रहता है लेकिन भारत का मानना है कि राजनीतिक कार्य वाइयो का आधार धर्म को नहीं बनाया जा सकता।

पाकिस्तान लगातार सीमा पार आंतकवाद में संगलन है और वह कश्मीर में निर्दोष लोगों की हत्या को अंजाम दे रहा है भारत द्वारा द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने की हरसंभव बेहतरीन प्रयासों के बावजूद पाकिस्तान राजनीतिक प्रतिशोध के चलते अब तक चार युद्ध कर चुका है।