एम जी रानाडे ने हिंदू धर्म को किस प्रकार बदला

एम जी रानाडे ने हिंदू धर्म को किस प्रकार सुधारना चाहा

एमजी रानाडे ने धार्मिक क्षेत्र में किस प्रकार तथा कौन-कौन से सुधार किए।

रानाडे अत्यधिक अपने धर्म को लेकर सच्ची आस्था विश्वास वाले व्यक्ति थे। और वह हिंदुओं में धार्मिक तौर पर सुधार लाना चाहते थे उनके अनुसार हिंदुओं का काफी पतन हो चुका है तथा पतन धार्मिक विश्वासों और नीतियों में विकृतियों के कारण हुआ था यही कारण था कि रानाडे हिंदू धर्म में सुधार लाना चाहते थे।

रानाडे के अनुसार हिंदू धर्म की पुराने विचारधारा जिसके भीतर ब्राह्मणवाद की झलक थी उस प्राचीन ब्राह्मणवाद विचारधारा को रानाडे हिंदू धर्म से निकाल कर फेंकना चाहते थे तथा उनके अनुसार हिंदू धर्म का जो पतन हुआ है वह केवल पुरानी विचारधाराओं तथा ब्राह्मणवाद के कारण हुआ था।

रानाडे द्वारा हिंदू धार्मिक प्रथाओं का खंडन

एक सच्चा समाज सुधारक होने के साथ-साथ रानाडे भारतीय संस्कृति और धर्म के महान प्रशंसक तथा विद्वान होते हुए भी रन्नाडे को हिंदू धार्मिक विश्वासों और पुरानी प्रथाओं से कड़ी आलोचना थी वह प्राचीन रीति रिवाज तथा प्रथाओं का पुनर्निर्माण करके उनको पूरी तरह बदलना चाहते थे, रानाडे महान प्रशंसक होते हुए भी कभी धर्म परिवर्तन तथा जाति भेदभाव में किसी भी प्रकार का समर्थन नहीं किया करते थे सदैव वह इस सब रीति-रिवाजों खिलाफ ही रहा करते थे।

रानाडे के अनुसार हिंदू धर्म अपने शुरुआती दिनों में बहुत ही पवित्र था लेकिन जैसे-जैसे समाज की उत्पत्ति तथा वक्त बदलता गया कुछ प्राचीन विचारधाराओं या फिर ब्राह्मणवाद की विचारधाराओं को हिंदू धर्म के अंदर सम्मिलित करके हिंदू धर्म को पूर्ण तरह विलुप्त कर दिया गया तथा एक नई विचारधारा हिंदू धर्म के नाम पर स्थापित कर दी गई जिसे लोगों ने अपना मूल रूप तथा रीति रिवाज और परंपरा मानकर उसका प्रचलन कर दिया तथा वहां अज्ञानता का संकेत था, और वही प्राचीन विचारधारा तथा प्राचीन ब्राह्मणवाद विचारधारा आज के समय में भी हिंदू धर्म में सम्मिलित होकर हिंदू धर्म को विलुप्त करती जा रही है.

रानाडे के अनुसार लोगों ने पुरानी विचारधारा को हिंदू धर्म में शामिल करके हिंदू धर्म का अस्तित्व तो खत्म कर ही दिया था तथा वह लोग हिंदू धर्म को एक बहूईश्वरवादी के रूप में मानने लगे थे अर्थात ईश्वर को केवल बाहर बाहर से मानना तथा किसी प्रकार की कोई भावना ईश्वर के लिए अपने मन में नहीं रखना, रानाडे एक सच्चे हिंदू विचारधारा के प्रशंसक थे उनका विश्वास केवल ईश्वर के अस्तित्व में था वह हिंदू धर्म के मूर्ति पूजा तथा वैदिक पुराणों का पूरी तरह खंडन किया करते थे उनके अनुसार पुरानी जो विचारधाराएं चलती आ रही है समाज में उन्होंने ही हिंदू धर्म का खात्मा कर दिया और अलग प्रकार की विचारधारा शामिल कर दी गई जिसमें जातिवाद वर्ग भेद तथा ऊंच नीच शामिल है।

बहुईश्वरवाद के कारण ही तथा ईश्वर में सच्ची आस्था विश्वास और अस्तित्व को मानने के बजाय हिंदू धर्म को कुछ इस तरह प्रस्तुत कर दिया गया जिसमें जातिवाद भेदभाव तथा कई प्रकार की अनैतिक रीति रिवाज शामिल कर दिए गए जिसके कारण हिंदू धर्म के अंदर अंधविश्वासी पाखंडवाद तथा भ्रष्ट नीतियों को बढ़ावा मिलता चला गया.

रानाडे मूर्ति पूजा के पूरी तरह खिलाफ थे उनका मानना था कि कुछ सामाजिक तत्वों ने प्राचीन समय में विभिन्न देवी-देवताओं मंदिर धार्मिक पुरातन पंत और स्वार्थों का केंद्र बन गए मूर्ति पूजा से धार्मिक अधिकारों के हाथ और मजबूत होते चले गए तथा एक निकटतम पुरोहित का जन्म हुआ था जिसके कारण इन सब ने मिलकर हिंदू धर्म की सत्य और अस्तित्व के विश्वास की परंपरा को छुपा दिया था यही कारण था कि रानाडे हिंदू धर्म के अंदर पूरी तरह से सुधार करना चाहते थे तथा प्राचीन समय की रीति रिवाज और विचारधाराओं को नष्ट कर देना चाहते थे।  

रानाडे का लक्ष्य था कि जो जो हिंदू धर्म समाज से विलुप्त होता जा रहा है उसकी रक्षा करना तथा सामाजिक समुदाय तथा उनके लोगों को सही रास्ते को दिखाना तथा उन्हें वास्तविकता से परिचित करवाना कि वह एक गलत राह की ओर चले जा रहे हैं जिसमें अनेक प्रकार की त्रुटियां पाई जाती है जो कि सामाजिक रूप से हर मनुष्य के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं. रानाडे हिंदू धर्म को उनकी तमाम कुर्तियां से मुक्त कराना चाहते थे और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने अपने मित्रों की सहायता से प्रार्थना समाज की स्थापना की।

ईश्वरवाद का वास्तविकता रूप

रानाडे एक ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास रखते थे इसलिए वहां एक विद्वान ईश्वर वादी के रूप में जाने जाते थे उन्होंने अपनी एक किताब फिलासफी आफ इंडियन थीम्स मतलब भारतीयों का ईश्वर बाद का दर्शन उस किताब के अंदर रानाडे ने ब्रह्मांड की ईश्वर वादी विवेचना को शामिल किया और भौतिकवाद और पुरानी विचारधाराओं के खिलाफ उसमें लेख लिखा रानाडे का सिद्धांत कुछ इस प्रकार का था कि अस्तित्व मानव आत्मा प्रकृति और ईश्वर के बीच बटा हुआ है ईश्वर समस्त चिंतन धाराओं का एक स्रोत है तथा मानव मन ईश्वर में शरण का इच्छुक रहता है जिसके पीछे कारण है कि ईश्वर वह परमात्मा है जिसने मानव और समाज के बीच संपर्क स्थापित किया ईश्वर एक बहुत ही बुद्धिमान,दयालुता,सुंदर और शक्तिमान का स्रोत है।

रानाडे ने सभ्यता विकास के अलग-अलग चरणों में ईश्वर को सही रूप से समझाने की कोशिश करी है उनके अनुसार बहू ईश्वर बाद तथा मूर्ति पूजा इसी प्रक्रिया के कुछ चरण हैं. रानाडे यह उम्मीद रखते थे कि विज्ञान की विकसित प्रणाली और ज्ञान के प्रसार के साथ-साथ मानव आत्मा के कुछ पहलुओं को समझाने में समर्थ होगा. रानाडे मानते थे कि ईश्वर और मनुष्य के बीच किसी प्रकार की कोई भी समानता नहीं है मनुष्य केवल अपने स्वार्थ के लिए ईश्वर को मानता है तथा मनुष्य को ही स्वयं दूसरे मनुष्य के पास अपने संबंधों के उद्देश्य और सत्य की खोज करनी चाहिए।

रानाडे हिंदू धर्म की पुरानी विचारधाराओं तथा विचार धारकों को बिल्कुल भी नहीं मानते थे जिसमें शंकराचार्य तथा अवतारवाद के गुण शामिल हुआ करते थे रानाडे इनका खंडन करते समय कहा करते थे दृष्टि में ईश्वर और मानव एक नहीं है देवी अभिधा ने उन्हें अलग-अलग समाज स्थान दिया है तथा कोई भी मनुष्य ईश्वर नहीं बन सकता है और ना ही वह अपनी सत्ता को ब्रह्म में लीन कर सकता है.आत्मा और परमात्मा जीवन में कभी भी एक दूसरे के साथ मिलन नहीं कर सकती उनका यह लक्ष्य रहस्य में भ्रामक है रानाडे के अनुसार सत्य और नैतिक से साधु जीवन जीना ही मोक्ष का सार है।

रानाडे द्वारा प्रार्थना समाज और ब्रह्म समाज की तुलना

राजा राममोहन राय के द्वारा एक्शन स्थापित ब्रह्म समाज से रानाडे को प्रार्थना समाज की स्थापना की प्रेरणा तथा जोत मिली. रानाडे के अनुसार उन्होंने यह पहले ही सही प्रकार से तय कर लिया था कि प्रार्थना समाज और ब्रह्म समाज के बीच सामाजिक परंपरा तथा विचारधारा को बिल्कुल भी नकल के तौर पर नहीं उतारा जाएगा दोनों समाज के अपने अलग अलग से होने चाहिए, हिंदू समाज में बहुत से सुधारो तथा बदलाव की जरूरत है ऐसा रानाडे के अनुसार कहा गया उनका मानना था कि समाज में बदलाव केवल प्रार्थना समाज द्वारा ही आ सकता है, वह केवल तभी संभव है जब आप हिंदुत्व को अपने जीवन में शामिल करते हैं, ना कि ब्रह्म समाज की तरह जिसमें रानाडे के अनुसार हिंदुत्व जाकर हिंदू संप्रदाय की ऐतिहासिक नींव को पूरी तरह हिलाकर रख दिया था।

रन्नाडे केवल समाज में प्रार्थना समाज को स्थापित करना चाहते थे उनके अनुसार प्रार्थना समाज में एक वास्तविकता तथा ईश्वर का अस्तित्व शामिल होता है जो हमें सच्चाई से अवगत कराता है तथा प्रार्थना समाजसमाज के भीतर एक भक्ति आंदोलन का प्रचार प्रसार कर सकता है, रानाडे हिंदुत्व के भक्ति तथा वेदो, विचारों वाले एक बहुत ही सरल तथा विद्वान व्यक्ति थे उनका लक्ष्य केवल हिंदुत्व तथा प्राचीन विचारधाराओं को अलग करना था उनका मत था कि पुरानी विचारधाराओं जो ब्राह्मण समाज से ताल्लुक रखती है उन्होंने हिंदू धर्म के भीतर आकर हिंदुत्व की परंपराओं का विनाश कर दिया है तथा अपनी  परंपराएं रीति रिवाज को शामिल कर दिया है । रानाडे केवल समाज का उद्धार चाहते थे तथा एक बहुत ही बड़े सामाजिक सुधारक बनकर उभरे थे।