पानीपत की पहली लड़ाई और मुगल साम्राज्य का सूर्योदय

मुगल साम्राज्य की स्थापना और लोधी वंश की समाप्ती

वैसे तो भारत के इतिहास में ना जाने कितनी लड़ाइयां दबी हुई हैं लेकिन अगर हम बात करें पानीपत युद्ध की तो यह कुछ लड़ाइयां इतनी भीषण रूप से हुई जिन्होंने इतिहास में नाम दर्ज कर लिया, सभी लड़ाई में अलग-अलग साम्राज्य के सम्राट किसी अन्य साम्राज्य पर अपना वर्चस्व कायम करके अपने अनुसार उस साम्राज्य को चलाना चाहते थे पानीपत की लड़ाई भी कुछ इन्हीं बातों को आपस में जोड़ती है.

12 वीं शताब्दी से लेकर आने वाले कई वर्षों तक पानीपत की लड़ाई हो को देखा गया है इसका असल उद्देश्य माना जाता है कि उत्तर भारत के कार्यकलापों पर अपना वर्चस्व कायम करने के लिए अनेक अनेक सम्राटों ने पानीपत के लिए युद्ध किए।

पानीपत की पहली लड़ाई (First Battle of Panipat) दिल्ली के तख्त व दिल्ली में अपना वर्चस्व कायम करने के लिए दो साम्राज्य के बीच लड़ी गई कहा जाता है कि अगर पानीपत के युद्ध में अगर भारतीय योद्धाओं व राजाओं की हार ना हुई होती तो भारत के भीतर कभी अंग्रेज व ब्रिटिश सरकार कदम कभी रखी नहीं पाते।

पानीपत दिल्ली से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर माना जाता है, जैसा कि आप जानते हैं पानीपत और महाभारत दोनों एक ही समय के प्रचलित वाक्य हैं, पानीपत का ऐतिहासिक नाम पांडुप्रस्त है। पानीपत का नामकरण माना जाता है कि महाभारत के पांच पांडव के द्वारा ही किया गया था। समय बीतता गया और अब के समय में पांडुप्रस्त को पानीपत के नाम से जाना जाता है।

आइए हम बताते हैं आपको कुछ रोचक तथ्य और वाक्य , पानीपत की लड़ाई के समय हुए थे और हम आपको बताएंगे की पानीपत की लड़ाईयों के असली कारण क्या रहे होंगे और असल में यह लड़ाइयां अपने वर्चस्व के लिए लड़ी गई थी या साम्राज्य को स्थापित करने के लिए।

पानीपत की पहली लड़ाई

21 अप्रैल सन 1526 को पानीपत की पहली लड़ाई हुई, पानीपत की लड़ाई को मुगल साम्राज्य के उद्भव के रूप में देखा जाता है। यह लड़ाई बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच लड़ी गई इस लड़ाई के अंदर गन पाउडर व अनेक अनेक हथियारों का भी इस्तेमाल किया गया इस लड़ाई को बहुत ही आधुनिक लड़ाई के रूप में भारतीय इतिहास में देखा जाता है।

बाबर जो कि तैमूर और चंगेज खान के वंशज माने जाते हैं तथा इब्राहिम लोधी अफगान के शासक तथा बहलोल खान के वंशज थे। बाबर ने पहले ही अपना पित्र प्रधान साम्राज्य जो उज्बेकिस्तान कहलाता है तथा समरकंद को भी पानीपत की लड़ाई के दौरान नहीं बचा सके। बाबर ने जैसे-तैसे अपने साम्राज्य को संभाला और काबुल पर अपना वर्चस्व कायम किया कई वर्षों तक उन्होंने काबुल के भीतर ही अपना जीवन व्यतीत किया उस समय उनकी उम्र 43 वर्षा हो चुकी थी।

दिल्ली की ओर विस्तार

बाबर ने अपने साम्राज्य खोने के बाद काफी वर्षों तक संघर्ष किया, तथा उस संघर्ष के दौरान उन्होंने अपना साम्राज्य विस्तार करने का विचार बनाया क्योंकि काबुल में रहते रहते बाबर का साम्राज्य तथा सेना एकजुट और मजबूत बन चुकी थी जिसके कारण बाबर को अब अनुमान हो गया था कि अब मैं अपनी सेना के बल पर किसी और साम्राज्य पर अपना वर्चस्व कायम कर सकता हूं।

बाबर ने दिल्ली की ओर अपना साम्राज्य स्थापित करने की नीतियां बनाई तथा उसके पीछे कारण भी अनेक थे। बाबर भली-भांति जानते थे कि अगर व्यापार की नजर से दिल्ली को देखा जाए तो दिल्ली सबसे बेहतर स्थान उनके लिए साबित होगा क्योंकि दिल्ली भौगोलिक रूप से पश्चिमी तट से जुड़ी हुई है जिससे अनेक साम्राज्य अपने सामानों का आयात निर्यात करते थे।

बाबर की अनुमानित रणनीति इब्राहिम लोदी के खिलाफ

बाबर के पास अपने पूर्व समय में साम्राज्य खोने के पश्चात सैनिकों का अभाव बहुत ही कम रह गया था जिसके कारण बाबर को अनुमान था कि अगर मैं इब्राहिम लोधी से जाकर युद्ध करता हूं तो उसका खामियाजा मुझे भुगतना पड़ सकता है तथा मुझे अपनी बची हुई सेना भी खानी पड़ सकती है। यही सब विचार करने के बाद बाबर ने एक ऐसी रणनीति बनाई जिसने इब्राहिम लोदी की सेना को बुरी तरह से पराजित करके खदेड़ दिया।

इब्राहिम लोदी एक बहुत ही शक्तिशाली सम्राट अपने समय का माना जाता था उसके पास लगभग एक लाख सैनिक तथा 50,000 हाथियों की सेना को मिलाकर अन्य प्रकार के कारतूस,बारूद, तथा और भी हथियार थे लेकिन अगर बाबर की अनुमानित सेना को मापा जाए तो बाबर के पास केवल 15 हज़ार की सैनिकों की एक सीमित सेना थी जिसे लेकर बाबर चिंतित तो था लेकिन उसे थोड़ा समय लगने के बाद उसने एक ऐसी रणनीति बनाई जो इब्राहिम लोदी पर पूरी तरह से हावी हो गई।

बाबर की पहली रणनीति

बाबर को भलीभांति इस बात का ज्ञान था कि इब्राहिम लोदी के पास अनेक प्रकार के हथियार तथा कारतूस और तौप है, जिससे अगर इब्राहिम लोदी उसे पानीपत के मैदान में इस्तेमाल करता है तो , इब्राहिम लोदी अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल को अंजाम देगा। बाबर का मानना था जब इब्राहिम लोदी और उसकी सेना पानीपत के मैदान में होगी और जिस वक्त इब्राहिम लोदी के हाथी जो बहुत ही बड़ी संख्या में मैदान में होंगे, उसी समय बाबर और इब्राहिम लोदी की ओर से तोपों का इस्तेमाल किया जाएगा जिससे इब्राहिम लोदी के हाथी अपना आपा खो कर अपनी ही सेना को रोंद डालेंगे। बाबर का अनुभव एकदम सही प्रकार काम आया जैसा बाबर की रणनीति के अनुसार रचा गया था बिल्कुल पानीपत के युद्ध में वैसा ही हुआ इब्राहिम लोदी के हाथियों ने अपना आपा खो कर इब्राहिम लोदी की सेना को ही रौंद डाला जिससे इब्राहिम लोधी को बहुत ही हानि पहुंची ।

बाबर की दूसरी रणनीति

बाबर की पहली रणनीति जो पूरी तरह से सफल हुए इब्राहिम लोधी की सेना को पराजय करने में। इब्राहिम लोदी की सेना को पराजय करने के पश्चात बाबर का मनोबल सातवें आसमान पर पहुंच चुका था उसी समय बाबर ने अपनी दूसरी रणनीति को अंजाम दिया। दूसरी रणनीति के भीतर बाबर ने मैदान में इब्राहिम लोदी की सेना के रास्तों में बड़े-बड़े गड्ढे खुदवा कर उन्हें ढकवा दिया, जैसे ही इब्राहिम लोदी की सेना आगे बढ़ी हथियार वह अपने हाथियों के साथ सब के सब उन खुदे हुए गड्ढों में जाकर दफन हो गए तथा जो सेना पीछे से आ रही थी उसे इस बात का अनुमान ही नहीं हुआ कि उनके साथ हो क्या रहा था मैदान के अंदर इससे पहले उन्हें समझ आता उतने में ही बाबर की सेना ने उन्हें चारों ओर से घेरकर उनके सर कलम कर दिए, बाबर के द्वारा बनाई गई दूसरी रणनीति भी पूरी तरह सफल रही।

तुलुगामा और अराबा रणनीति

बाबर की इस रणनीति के भीतर सेना को दाएं और बाएं में विभाजित करके एक ऐसी रणनीति बनाई बीच के जब इब्राहिम लोदी की सेना खुदे हुए गड्ढों में जाकर गिरी तो बाबर की सेना ने तुलुगामा रणनीति अपनाकर उस इब्राहिम लोधी की सेना का वध किया। इस रणनीति के भीतर दाएं बाएं और केंद्र बिंदु निश्चित करके दुश्मन की सेना को फंसाकर मारा जाता था।

तुलुगामा और अराबा रणनीति के रचीयता बाबर को ही माना जाता है ऐतिहासिक रूप में। दोनों रणनीतियों में दुश्मन की सेना को इस प्रकार फंसा लिया जाता था कि दुश्मन की सेना के पास कोई भी दूसरा रास्ता नहीं बचता था, तथा इन रणनीतियों में दुश्मन को दाएं और तथा बाएं ओर से घेरकर मारा जाता था तथा जो बच जाते थे उन्हें केंद्र की ओर से हमला करके उनका वध किया जाता था।

हुमायूं का अनुभव पानीपत की लड़ाई में

पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर का पुत्र हुमायूं भी शामिल था जिसने इब्राहिम लोदी के सेना को इस प्रकार निरस्त कर दिया तथा इब्राहिम लोदी की सेना के पास अपने प्राण त्यागने के अलावा और कोई भी चारा नहीं बचा था। इब्राहिम लोदी की इतने विशाल सेना भी बाबर और हुमायूं के सामने ना टिक सकी , और युद्ध के दौरान भाइयों ने तुलुगामा और अराबा रणनीति के अनुसार ही अपने पिता बाबर का साथ दिया जो गड्ढे रणनीतियों के अनुसार खोदे गए थे हुमायूं दाएं तथा बाएं ओर से इब्राहिम लोदी की सेना का वध कर रहे थे तथा बाबर केंद्र से एक विशाल हाथी पर बैठकर अपनी सेना का मनोबल बढ़ा रहे थे तथा इब्राहिम लोदी की सेना को पराजित होते देख रहे थे।

बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच युद्ध

जैसे-जैसे इब्राहिम की विशाल सेना बाबर और हुमायूं के आगे कमजोर पड़ती दिख रही थी उसी समय इब्राहिम लोदी को इस बात की जानकारी मिली तथा लोधी ने अपना आपा खो कर सीधा हाथियों और अपनी बची हुई सेना के साथ मैदान में पहुंच गया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी क्योंकि बाबर की सेना ने इब्राहिम लोदी की सेना को इस प्रकार पराजित कर दिया था कि अब इब्राहिम लोदी के पास कोई भी उम्मीद नहीं बची थी।

माना जाता है कि उसी युद्ध के दौरान जब इब्राहिम लोदी ने मैदान में कदम रखा उसके थोड़ी देर बाद ही बाबर ने इब्राहिम लोदी का सर कलम कर दिया था। बाबर ने इब्राहिम लोदी के सैनिकों के सर कलम करवा कर एक 35 फुट ऊंची दीवार बनवा दी जो इस बात का प्रतीक है कि अब केवल बाबर का वर्चस्व भारतवर्ष के ऊपर कायम हो गया था। पानीपत की पहली लड़ाई को क्रूरता की मिसाल के तौर पर भी जाना जाता है।

इब्राहिम लोधी की हत्या के बाद बाबर का वर्चस्व हिंदुस्तान पर कायम हो गया था तथा बाबर और हुमायूं इतने क्रूर सम्राट माने जाते थे कि जो सेना इब्राहिम लोदी की युद्ध के दौरान बच गई थी हुमायूं और बाबर ने उनके भी एक-एक कर सबके सर कलम करवा दिए और अपने मुगल साम्राज्य की स्थापना भारतवर्ष के भीतर की।

ऐतिहासिक रूप से बाबर को क्रूरता का दूसरा नाम दिया गया था

युद्ध में विजय पाने की पहली चाबी समझदारी और साहस होता है