भारत और बांग्लादेश के बीच अटका न्यू मुरे द्वीप विवाद

भारत और बांग्लादेश के बीच अटका न्यू मुरे द्वीप विवाद

भारत और बांग्लादेश के बीच किस प्रकार के संबंध

दिसंबर 1971 में बांग्लादेश का जन्म भारत और पाकिस्तान का युद्ध सीधा नतीजा निकला जिसमें पाकिस्तानी सैन्य टुकड़ियों ने बिना किसी शर्त तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में आत्मसमर्पण कर दिया था। भारतीय उपमहाद्वीप में बांग्लादेश के प्रादुर्भाव को एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में परिभाषित किया।

भारत को पूरी पाकिस्तान मुक्त करने के लिए विवश होना पड़ा क्योंकि भारत के समक्ष उस समय सबसे बड़ा संकट एक करोड़ शरणार्थियों के सीमा पार से घुसने का था। भारतीय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा पाकिस्तान पर आगामी लोक के नेताओं के साथ समझौता करवाने के लिए दबाव बनाया गया लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला। 

मार्च 1972 को भारत और पाकिस्तान दोनों देशों ने मित्रता और शांति की संधि पर दस्तखत किए श्रीमती इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश को भारत के पूर्ण सहयोग और राष्ट्रीय मैं उसे प्रवेश दिलाने का पूरा भरोसा दिलाया। इस संधि की समय सीमा 25 वर्ष की थी पाकिस्तान इस संधि पर दस्तखत करने के पश्चात भी असंतुष्ट ही था। और उसने इसे सैन्य गठबंधन का नाम दिया लेकिन संधि के प्रावधानों के अध्ययन से पता चलता है कि इसका मुख्य उद्देश्य द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करना तथा क्षेत्रीय शांति कायम करना और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना था। 

यह निश्चित तौर पर किसी देशों के समूह के खिलाफ कोई सैन्य संधि नहीं थी। उसके बाद 25 मार्च 1972 को दोनों देशों के बीच एक संक्षिप्त व्यापार समझौता किया गया इस तरह परस्पर समानता और आपसी हितों मित्रता तथा सहयोग की पृष्ठभूमि मित्रता संधि और व्यापार समझौता दोनों देशो के बीच हुआ।

गंगाजल के पर दोनों देशो के बीच दो टूक

भारत और बांग्लादेश के बीच विवाद की सबसे बड़ी समस्या गंगा नदी के जल के बंटवारे से तालुकात रखती है। यह विवाद जनवरी से मई के बीच खासतौर पर मार्च के मध्य से मध्य मई तक गंगा के पानी के बंटवारे से जुड़ा हुआ है।  जब गंगा का बहाव 55000 क्यूसेक के न्यूनतम स्तर पर पहुंच जाता है । समस्या का पूरा निचोड़ है कि अगर भारत में न्यूनतम 40000 क्यूसेक पानी अपने लिए हुगली में छोड़ता है जो कोलकाता बंदरगाह को बचाने के लिए कम से कम अनिवार्य है। 

बांग्लादेश को केवल 15000 क्यूसेक पानी ही मिल पाता है जो उसकी आवश्यकता के हिसाब से बहुत कम मात्रा में है भारत द्वारा इतनी मात्रा में पानी ले लेने से बांग्लादेश में कई स्तरों पर समस्याएं पैदा हो जाती हैं। इस प्रकार भारत और बांग्लादेश के बीच मुख्य समस्या गंगाजल के समान बंटवारे को लेकर ही है।

बंगाल और बिहार की सीमा पर भारत द्वारा गंगा नदी पर बनाया गया फरक्का बैराज कोलकाता के उत्तर में 400 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। इस बैराज के निर्माण का मुख्य कारण कोलकाता बंदरगाह का संरक्षण और रखरखाव तथा भागीरथी और हुगली की नोगयामता को बनाए रखता था।

फरक्का बैराज के मसले को हल करने के लिए कई समझौते किए गए लेकिन इस दिशा में आखिरी समझौता दोनों सरकारों के बीच 1966 में संपन्न हुआ। शेख हसीना की सरकार ने भारत के साथ अगले 30 वर्षों तक गंगा जल के बंटवारे से संबंधित एक संधि की इस में भारत का प्रतिनिधित्व तत्कालीन प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा ने किया। इस संघ की मुख्य विशेषता यह थी कि गंगा के पानी का निर्धारण 1 जनवरी से 31 मई तक की अवधि में 10 दिनों के हिसाब से 15 हिस्सों में किया जाएगा।

न्यू मुरे द्वीप की विशाल समस्या का निवारण

भारत और बांग्लादेश के बीच कुछ क्षेत्रों के स्वामित्व संबंधी विवाद भी रहे हैं। इनमें न्यू मोरे दिन विवाद,  3 गलियारे से जुड़ी समस्या और बेलोनिया सेक्टर में मोहनिया 4 में हुए संघर्ष शामिल है। इन तीनों में न्यू मुरे द्वीप विवाद अभी प्रमुख समस्या के रूप में बना हुआ है बंगाल की खाड़ी में स्थित न्यू मुरे द्वीप के अंतर्गत 2 से 12 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र आता है जो कि समुद्री ज्वार भाटा पर निर्भर करता है। भारत के सबसे करीबी तटीय क्षेत्र से वह करीब 5200 मीटर की दूरी पर और बांग्लादेश के तरफ से करीबन 7000  मिटर की दूरी पर स्थित है।

12 मार्च 1980 को द्वीप पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराने के बाद से ही सारी समस्याएं उत्पन्न होते चली गई। भारत और बांग्लादेश के संबंधों पर 3 बीघा गलियारे के विवाद के चलते भी प्रतिकूल असर पड़ा है। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के कार्यालय के दौरान इस छोटे से भारतीय परिषद को बांग्लादेश को पट्टे पर दे दिया गया था। इस समझौते का कोई खास हल नहीं निकल पाया क्योंकि इसके लिए संवैधानिक संशोधन की जरूरत करनी पड़ती।

दोनों देशो के अनेक व महत्वपूर्ण मुद्दे

भारत र बांग्लादेश के बीच विवाद के अन्य मुद्दों में एक चकमा शरणार्थियों की समस्या भी शामिल है जिन्होंने भारत के राज्य त्रिपुरा में शरण ले रखी है। 1994 में हुई वार्ता के मुताबिक इन शरणार्थियों को त्रिपुरा से वापस बांग्लादेश की चिट्गोंग पहाड़ियों में भेज दिया गया था। और अभी भी वापसी की प्रतीक्षा कर रहे हैं। भारत के सामने एक अन्य चुनौती इस समय वे बांग्लादेशी शरणार्थी हैं जिनमें से अधिकांश गरीब तबकों से हैं और भारत के विभिन्न हिस्सों में आकर बस गए थे।

एक आकलन के अनुसार इनकी संख्या 1000000 से भी ज्यादा है जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है भारत के कई बार अनुरोध के बावजूद बांग्लादेश सरकार ने वापस बुलाने के लिए कोई कदम नहीं उठा पा रही।