महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हल्दीघाटी युद्ध

हल्दीघाटी का युद्ध किन दो शासकों के बीच लड़ा गया और इसके पीछे क्या कारण रहे थे

चार दिन का हल्दीघाटी का युद्ध जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर और मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप के बीच लड़ा गया था, लेकिन ऐसी क्या वजह थी कि अकबर मेवाड़ के ऊपर अपना शासन जमाना चाहता था तथा उस पर कब्जा करना चाहता था, हल्दीघाटी का युद्ध मुगलों और राजपूतों के बीच लड़ा गया था जिसमें कई लाख सैनिक मारे गए थे और हानि दोनों ओर से बराबर हुई थी।

हल्दीघाटी के युद्ध का कुछ अलग इतिहास है माना जाता है 442 साल में हल्दीघाटी की जमीन पर अनेक प्रकार के युद्ध हुए हैं अनेक प्रकार के शासकों के बीच लेकिन आज तक यह साफ नहीं हो पाया कि हल्दीघाटी युद्ध का असली कारण आज तक किसी के सामने नहीं आ पाया।

महाराणा प्रताप और मोहम्मद जलालुद्दीन अकबर के बीच क्या मतभेद थे

वैसे तो जाना जाता है कि जलालुद्दीन अकबर महाराणा प्रताप से बहुत ही डरता था और उनसे युद्ध करने का साहस कभी नहीं करता था क्योंकि अकबर को इस बात का अनुमान पहले से ही था कि अगर मैं महाराणा प्रताप से युद्ध करता हूं तो मैं निश्चय ही पराजित हो जाऊंगा और अपना साम्राज्य खो दूंगा, अकबर के पास 80000 सैनिक तथा हजारों हाथियों की सेना, तोप,अनुभवी घुड़सवार और अन्य प्रकार के ऐसे हथियार थे।

जलालुद्दीन अकबर मेवाड़ के ऊपर अपना शासन क्यों कायम करना चाहता था, उसके पीछे अनेक कारण थे जलालुद्दीन अकबर को पता था कि राजनीतिक और भौगोलिक रूप से अगर  अकबर को अपना व्यापार हिंदुस्तान के भीतर  जमाना था तो उसे मेवाड़ के भीतर अपना शासन कायम करना ही पड़ेगा, क्योंकि मेवाड़,गंगा से होने वाले व्यापार को पश्चिमी तट से जोड़ता था तथा पश्चिमी साम्राज्य के देशों से आयात निर्यात करना था तो अकबर को मेवाड़ के अंदर अपने कदम जमाने अनिवार्य हो चुके थे।

अकबर के द्वारा महाराणा प्रताप को भेजा गया संधि प्रस्ताव

अकबर के अनेक प्रयासों के बाद भी महाराणा प्रताप अपनी बात से बिल्कुल भी नहीं डगमगाए तथा उन्होंने अकबर को साफ शब्दों में मना कर दिया कि अगर वह मेवाड़ के ऊपर कब्जा करने का मन बनाता है तो वहां उसकी जीवन की सबसे बड़ी भूल और उसे अपने प्राण तक त्यागने पढ़ सकते हैं, इस सब बातों को सुनकर अकबर एक बार को डर गया लेकिन उसने बाकी हिंदू राजाओ का सहारा लिया संधि प्रस्ताव को लेकर ।

अकबर ने राजा मानसिंह, टोडरमल, तथा भगवान दास को अपना संदीप प्रस्ताव लेकर महाराणा प्रताप के पास भेजा, लेकिन महाराणा प्रताप ने सभी प्रस्ताव को खारिज करते हुए मेवाड़ राज्य छोड़ने से मना कर दिया.  अकबर ने अपने जीवन में महाराणा प्रताप को 8 से 9 बार संधि प्रस्ताव भेजें लेकिन अकबर की सारे प्रयास विफल होते जा रहे थे।

महाराणा प्रताप जो राजपूतों से ताल्लुक रखते थे तथा उनके वंशज थे उन्होंने कभी झुकना नहीं सीखा था वह अपने प्राण तो त्याग सकते थे लेकिन अपने मेवाड़ का शासक किसी मुगल के हाथों नहीं दे सकते थे, अकबर ने एक समय महाराणा प्रताप को ऐसा प्रस्ताव भेजा जिसके भीतर यह कहा गया कि आप “मुझे मेवाड़ का शासक दे दीजिए बदले में आधा हिंदुस्तान आपका होगा” महाराणा प्रताप ने बहुत सोच विचार कर बाद इस प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया।

अकबर और उदय सिंह

महाराणा प्रताप के पिता जी उदय सिंह भी अपनी वीरता और महानता के लिए मशहूर थे तथा अपने साम्राज्य में उनका एक अलग ही तरह का वर्चस्व था, पानीपत की पहली लड़ाई साल 1526 के दौरान बाबर हिंदुस्तान की जमीन पर कदम रख चुका था लेकिन उसे इस बात का पूर्ण तरह ज्ञात था कि उसे सबसे ज्यादा खतरा चित्तौड़ और मेवाड़ के राजा राणा संगा जोकि महाराणा प्रताप के दादाजी थे।

राणा सांगा एक बहुत ही महान वीर माने जाते थे जिसके सामने इब्राहिम लोधी ने भी घुटने टेक दिए थे, समय बीतता गया और एक दिन ऐसा आया जब राणा सांगा की सेना और बाबर की सेना आपस में आ मिली और अनेक कारणों से तथा कम सेनाओं के अभाव से राणा सांगा बाबर से पराजय हो गए।

राणा सांगा के जाने के बाद बाबर के पोते जलालुद्दीन अकबर ने राणा सांगा के पुत्र उदय सिंह जोकि चित्तौड़ के राजा उस समय थे अकबर ने उनके ऊपर आक्रमण करके उनसे चित्तौड़ का शासन छीन लिया तथा अपना साम्राज्य उसके ऊपर स्थापित कर दिया. चित्तौड़ से पराजय होने के बाद उदय सिंह अपना पलायन करके उदयपुर आकर बस गए, उदयपुर पहाड़ी क्षेत्र था जिसमें भीलो की संख्या अधिक थी उदय सिंह ने उन्हीं के बीच अपना बाकी जीवन बिताया तथा महाराणा प्रताप का जन्म भी उन भीलो के बीच उदयपुर में ही हुआ।

कौन थे महाराणा प्रताप

उदय सिंह और जयवंता बाई के पुत्र, जो भीलो के बीच अपना पूरा जीवन व्यतीत कर रहे थे तथा भीलो के राजाओं के साथ वह अपना शक्ति प्रदर्शन करते थे और उनसे प्रशिक्षण लिया करते थे, उदय सिंह ने उदयपुर में ही अपना आसन जमाया और वहीं पर महाराणा प्रताप का जन्म हुआ, लेकिन एक यह सबसे बड़ी विडंबना थी कि उदय सिंह की दूसरी पत्नी चाहती थी कि उनका पुत्र जगमल उदयपुर की राजगद्दी को संभाले तथा अपने साम्राज्य का सम्राट बने, ऐसा हो भी गया जगमल को उदयपुर की राजगद्दी मिल गई लेकिन उन्होंने उसका दुरुपयोग करके उदयपुर की जनता पर जुल्म ढाने शुरू कर दिए।

जगमल सिंह का शासन कुछ अनैतिक माना जा रहा था तो उदयपुर के सरदारों ने मिलकर जगमल सिंह को राजगद्दी से हटाने का का फैसला लिया, जगमल सिंह को गद्दी से हटाने का यह कारण भी था कि उसके मन के भीतर बहुत ही घमंड और जगमल सिंह डरपोक किस्म का राजा था, इन्हीं सब कारणों के चलते जगमल सिंह को गद्दी से हटाकर महाराणा प्रताप को उदयपुर का सम्राट घोषित कर दिया गया।

अकबर और जगमल सिंह, शक्ति सिंह का षड्यंत्र महाराणा प्रताप के विरुद्ध

जिस समय महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक उदयपुर में हुआ तो यह बात महाराणा प्रताप के दो सौतेले भाइयों को खटक रही थी जिसमें शक्ति सिंह तथा जगमल सिंह शामिल थे, जलालुद्दीन अकबर ने उसी समय का लाभ उठाकर महाराणा प्रताप के दोनों सौतेले भाइयों से संधि प्रस्ताव करके उनके दोनों भाइयों को अपने साथ शामिल कर लिया और महाराणा प्रताप को पराजित करने का षड्यंत्र रचा।

महाराणा प्रताप को जब इस बात का पता चला कि उनके दोनों सौतेले भाई अकबर के साथ जा चुके हैं और मुझे हराने का षड्यंत्र रच रहे हैं तो महाराणा प्रताप को इस बात का बहुत ही दुख हुआ, दुख होना अनिवार्य भी था क्योंकि अब महाराणा प्रताप बिल्कुल अकेले पड़ चुके थे. महाराणा प्रताप ने फिर भी हार नहीं मानी उनकी वीरता और साहस इतना मजबूत था।

अकबर से युद्ध करने का निश्चय कर लिया और अपने साम्राज्य के भीलो के साथ मिलकर अपनी एक सेना तैयार की, भीलो और महाराणा प्रताप के बीच बहुत ही गहरे संबंध थे क्योंकि कुछ वर्ष पूर्व उदय सिंह जब उदयपुर में आकर अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे तो भीलो ने ही उनकी सबसे ज्यादा सहायता की थी,सभी भील महाराणा प्रताप के वफादार थे तथा वह एक महाराणा प्रताप के लिए अपने प्राण त्याग सकते थे।

हल्दीघाटी युद्ध का आरंभ

साल 1576 आखिर वह समय आ ही गया था जब हल्दीघाटी का युद्ध अपनी चरम पर था, तथा दो महान सम्राट एक और जलालुद्दीन अकबर बाबर के पोते तथा दूसरी ओर राणा सांगा के पोते महाराणा प्रताप, जलालुद्दीन अकबर ने मानसिंह को 80000 सैनिकों के साथ तथा अनुभवी घुड़सवार को इकट्ठा करके मेवाड़ पर आक्रमण करने का आदेश दिया, लेकिन महाराणा प्रताप इस बात से परिचित थे कि अगर अकबर की सेना हल्दीघाटी की ओर अपने कदम बढ़ाएगी तो उसे पहले अरावली पर्वतों को पार करना होगा।

अरावली पर्वतों के बीच का स्थान पूरी तरह जंगल से भरा हुआ था चारों और बड़े-बड़े जंगल तथा पेड़ पौधे और पहाड़ थे, महाराणा प्रताप ने  भीलो के साथ मिलकर योजना बनाई तथा अपने अपने कुछ चंद सैनिकों के साथ मिलकर महाराणा प्रताप ने अकबर की महान सेना का सामना किया।

18 जून साल 1576, अकबर की महान सेना अरावली पर्वतों की और बड़ी उसी दौरान भील समुदाय ने अकबर की सेना को चारों उसे घेरकर उन पर छापामार और द्वीप कंटक नीति से अकबर की सेना को लहूलुहान कर दिया तथा मानसिंह को समझ नहीं आ रहा था कि उसकी सेना के साथ हो क्या रहा है। केवल 400 भील समुदाय के लोगों ने अकबर की सेना के 10,000 सैनिकों का वध कर दिया।

हल्दीघाटी की जमीन पर पहुंचने के दौरान महाराणा प्रताप की सेना की संख्या केवल 20000 थी और जलालुद्दीन अकबर की सेना लगभग 4 गुना महाराणा प्रताप की सेना से, अकबर की सेना के पास अनुभवी घुड़सवार तथा अनेक प्रकार के विशाल हथियार थे जिसका सामना भील समुदाय और महाराणा प्रताप की सेना ने जमकर सामना किया. महाराणा प्रताप की सेना की विशेषता यह थी कि उनके भीतर एक जबरदस्त आत्मविश्वास था उनका हर एक सैनिक अकेला अकबर के 10 सैनिकों के बराबर था।

महाराणा प्रताप और बहलोल खान, मानसिंह

हल्दीघाटी का युद्ध चल ही रहा था जिसमें महाराणा प्रताप की सेना जबरदस्त तौर तरीके अपनाकर मुगल साम्राज्य की सेना की छाती को चीर रही थी अपनी तीरंदाजी से, तथा महाराणा प्रताप की सेना इतनी मजबूत किस्म की बनी हुई थी कि वह अकबर की महान सेना का सामना बहुत ही डटकर कर रही थी हर एक सैनिक अपने प्राण की चिंता ना करते हुए अकबर की सेना का वध कर रहा था।

जलालुद्दीन अकबर का सबसे महत्वपूर्ण सेनापति बहलोल खान उसी दौरान महाराणा प्रताप के ऊपर हमला करता है , और दोनों के बीच जबरदस्त लड़ाई चलती है बहलोल खान का कद एक हाथी के समान माना जाता था,महाराणा प्रताप ने अपनी जबरदस्त प्रशिक्षण से बहलोल खान के दो हिस्से कर दिए तथा मानसिंह को भी पराजित कर दिया. अकबर के बेटे सलीम ने भी हल्दीघाटी युद्ध में हिस्सा लिया तथा एक क्षण ऐसा आया कि महाराणा प्रताप और सलीम आमने-सामने हो गए महाराणा प्रताप ने हाथी पर बैठे सलीम के सामने कदम रखा तथा अपना दाया पैर हाथी के सर पर रखकर सलीम की गर्दन पर तलवार तान दी, थोड़े बहुत प्रयास कर सलीम ने अपनी जान बचाई और वहां से भाग गया।

महाराणा प्रताप का रामप्रसाद हाथी 

महाराणा प्रताप और उनके जानवरों के बीच बहुत ही गहरा संबंध था वह अपने चेतक और रामप्रसाद को अपनी संतान से ज्यादा प्यार करते थे यही कारण था कि सभी जानवर महाराणा प्रताप के इतने वफादार थे कि अगर महाराणा प्रताप जैसे कह दे वह बिल्कुल वैसे ही किया करते थे।

हल्दीघाटी युद्ध के दौरान चेतक की मृत्यु के बाद अकबर के सैनिकों ने 10 हाथियों की मदद लेकर रामप्रसाद को अगवा कर लिया था, तथा अकबर के सामने पेश किया अकबर ने उस हाथी को बंदी बना लिया, लेकिन रामप्रसाद जो कि महाराणा प्रताप का वफादार हाथी था उसने अकबर के महल में 28 दिनों तक किसी भी प्रकार का भोजन तथा पानी नहीं खाया पिया जिसके कारण राम प्रसाद की मृत्यु हो गई। राम प्रसाद की मृत्यु के बाद यह संदेश अकबर तक पहुंचा, तो अकबर को इस बात का ज्ञात हो चुका था कि अगर महाराणा प्रताप का हाथी ही मेरे सामेन नहीं झुका तो महाराणा प्रताप को तो झुकाने का सवाल ही पैदा नहीं होता.

महाराणा प्रताप और चेतक

महाराणा प्रताप के पास उनका घोड़ा चेतक बहुत ही अनुभवी और समझदार माना जाता था हल्दीघाटी युद्ध के दौरान चेतक ने कई बार महाराणा प्रताप के प्राण बचाए, चेतक ने ऊंची ऊंची छलांग लगाकर तथा अपनी तेज गति से महाराणा प्रताप को हल्दीघाटी युद्ध में सफलताएं दिलाई तथा अनेक अकबर के सैनिकों का वध करवाया।

हल्दीघाटी युद्ध के भीतर हाथियों का भी अनेक स्थान था अकबर के पास 20,000 से एक हाथी था जो उस समय इस प्रकार तैयार किए जाते थे कि उन हाथियों की सूंड में तलवारे रखी जाती थी, जब महाराणा प्रताप चेतक के ऊपर बैठकर हल्दीघाटी युद्ध में अकबर के सैनिकों का वध कर रहे थे उसी दौरान चेतक ने एक ऊंची छलांग लगाई तथा हाथी की सूंड में रखी हुई तलवार चेतक के सीधा पैर पर लगी और चेतक का एक पैर कट गया लेकिन एक पैर कट जाने के बाद भी चेतक ने महाराणा प्रताप का साथ नहीं छोड़ा।  

एक स्थिति ऐसी आई जब महाराणा प्रताप को अकबर की सेना ने चारों ओर से बंदी बना लिया, उसी दौरान चेतक ने अपना कमाल दिखाते हुए महाराणा प्रताप को तेज रफ्तार से दौड़ लगाते हुए 28  फीट चोडे नाले को कूदकर चेतक ने महाराणा प्रताप के प्राण बचाए तथा उसी दौरान चेतक ने अपने प्राण त्याग दिए। चेतक की वफादारी केवल अपने महाराणा प्रताप के लिए ही थी उसने अपने प्राणों की चिंता ना करते हुए महाराणा प्रताप को विकट परिस्थिति से निकालकर एक सुरक्षित स्थान पर लाकर खड़ा कर दिया।  

हल्दीघाटी युद्ध का समापन

युद्ध के बाद मुगलों ने चित्तौड़ गोकुंडा कुंभलगढ़ और उदयपुर पर कब्जा कर लिया मगर प्रताप को नहीं हरा पाए जान लेना तो दूर की बात थी सारे राजपूत राजा मुगलों के अधीन हो हो गए लेकिन महाराणा प्रताप कभी नहीं हुए.हल्दीघाटी युद्ध का समापन होने के बाद भी महाराणा प्रताप ने मुगलों के साथ अनेक युद्ध लड़े और कभी पराजय नहीं हुए. हल्दीघाटी की के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप भील समुदाय के लोगों के साथ जाकर बस चुके थे और वहीं पर अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे उनका मानना था कि अगर मैं अपना साम्राज्य नहीं बचा पाया तो कोई बात नहीं लेकिन मैं कभी किसी दूसरे सम्राट के आगे अपना सर नहीं चुका पाऊंगा.

भीगी आंखों से अकबर के लफ्ज़ महाराणा प्रताप के लिए

एक रोज महाराणा प्रताप शेर का शिकार करते हुए गंभीर रूप से घायल हो गए लंबे समय तक उनका इलाज भील समुदाय के द्वारा चलता रहा लेकिन अब समय आ चुका था कि एक महान वीर इंसान को अपने प्राण त्यागने ही थे, गंभीर रूप से घायल होने के बाद महाराणा प्रताप का देहांत हो गया.

महाराणा प्रताप के देहांत के पश्चात यह सूचना जब अकबर तक जा पहुंची तो अकबर एक ऐसा सम्राट था जो अपने विरोधी तथा दुश्मन का भी सम्मान करता था उसने एक चिट्ठी लिखी महाराणा प्रताप के लिए उसमें यह लिखा गया कि महाराणा प्रताप जैसा इंसान आने वाले समय में पैदा होना मुश्किल है तथा इतना वीर इंसान जिसने अपने प्राणों का त्याग कर दिया लेकिन अपना सर नहीं झुकाया।

महाराणा प्रताप की मृत्यु का बेहद अफसोस है और मैं जिंदगी भर इस बात से निराश रहूंगा कि मैं महाराणा प्रताप को हल्दीघाटी युद्ध में तथा अनेक युद्ध में पराजित नहीं कर पाया।

अकबर