सत्याग्रह पर महात्मा गांधी जी के विचार तथा दृष्टिकोण

सत्याग्रह पर महात्मा गांधी जी के विचार तथा दृष्टिकोण

गांधी जी और सत्याग्रह

गांधी जी द्वारा सत्याग्रह का विचार तो सामने रखा ही था उन्होंने सत्याग्रह की अलग-अलग पद्धतियों के बारे में बहुत ही विस्तारपूर्वक समझाया है। गांधीजी के अनुसार अलग-अलग परिस्थितियों के अनुसार सत्य ग्रह की अनेक पद्धतियां कुछ इस प्रकार थी।

विरोधियो का नम्र दिल होना

आत्मपीड़न के द्वारा विरोधियों का हृदय परिवर्तन गांधी जी की सत्य ग्रह की पद्धतियों में आत्म पीड़न का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखा गया था गांधीजी का मानना था कि आत्म पीड़न के द्वारा अथवा सत्य के लिए तपस्या करने को कहा था।

गांधी जी का मानना था कि हाथ में पीड़न के द्वारा विरोधी पर अनुकूल प्रभाव होगा साथ ही वह अपनी गलतियों का एहसास भी करेगा परंतु सत्याग्रही को अपने ऊपर संयम रखते हुए विरोधी की किसी भी बात से अपना आपा नहीं खोना है साथ ही आत्म सम्मान पर चोट के अलावा सभी प्रकार हानि उस समय तक बर्दाश्त करनी चाहिए जब तक विरोधी को अपनी गलतियों का एहसास ना हो।

अहिंसात्मक

महात्मा गांधी जी के अनुसार विरोधी को अपनी बातें मनवाने का एक अन्य तरीका  असहयोग है, लेकिन वह इस संबंध में हिदायत देते हैं कि यह सहयोग पूर्ण रूप से अहिंसक होना चाहिए असहयोग में हिंसा के प्रवेश से और अधिक बुराइयों का उत्पन्न होता है उनके विचार में असहयोग का स्वरूप अहिंसात्मक ही हमेशा रहना चाहिए तभी यह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगा

गांधीजी ने अहिंसात्मक और असहयोग को व्यथित प्रेम की अभिव्यक्ति बताया है असहयोग उद्देश्य विरोधी को हिंसा से मुक्त कराना तथा उसके पश्चात उसके साथ सदैव असहयोग करना भी है आज सहयोग की भावना को साफ करते हुए गांधीजी ने एक बार कुमारी अगाधा हैरिसन को बताया था क्यों सत्याग्रह के शस्त्रागार का मैं आज असहयोग मुख्य हथियार होता है तथा यह नहीं भूलना चाहिए कि सत्य तथा न्याय के द्वारा विरोधी का सहयोग प्राप्त करने का एक मात्र साधन है।

गांधीजी के अनुसार असहयोग के मूल में यह विचार है कि दुष्ट व्यक्ति तब तक उद्देश्य में सफल नहीं होता जब तक कि उसको न्याय का शिकार व्यक्ति उसके साथ सहयोग ना करता हो , भले ही वह विवशता अथवा मजबूरी में ही ऐसा क्यों ना करें ऐसी स्थिति में सत्याग्रही का कर्तव्य है कि अन्याय के प्रतिरोध के कारण उसे कितने भी परेशानी क्यों ही ना उठानी पड़े अन्याय की इच्छा को पूरा देश के सामने झुकना कभी नहीं चाहिए गांधीजी के अनुसार और सहयोग का प्रयोग दिन प्रतिदिन की समस्याओं को हल करने के लिए सार्वभौमिक उपचार के रूप में बहुत ही सरलता पूर्वक किया जा सकता है इसका प्रयोग घनिष्ठ व्यक्ति को सत्य तथा न्याय के मार्ग पर लाने के लिए भी किया जा सकता है।

उपवास और विरोधी पर दबाव डालना

महात्मा गांधी जी के अनुसार सत्याग्रह के शस्त्रागार में सर्वाधिक शक्तिशाली हथियार उपवास ही होता है उनका यह भी कहना है कि इसका उपयोग बहुत सोचने विचारने के बाद तथा विशेष परिस्थितियों में ही कर आ जाना चाहिए अन्यथा वह ‘दुराग्रह’ कहलाएगा।

गांधी जी का यह भी कहना है कि उपवास व्रत तपस्या है जिसे की शांति तथा प्रेम पूर्ण ह्रदय ही प्रयोग में ला सकता है उपवास के द्वारा सत्यग्राही विपक्षी के दिलों में दबाव डालने के लिए नहीं किया जाना चाहिए, इसका इस्तेमाल केवल उसी व्यक्ति को करना चाहिए जिसका ईश्वर हमें पूरा विश्वास हो तथा इसका नैतिक चरित्र चरित्र पहुंचा हो गांधी जी ने उपवास तथा भूख हड़ताल में अंतर बताते हुए कहा कि उपवास करने वाले सत्याग्रही के पास काफी मात्र मे शक्ति तथा साफ विचार सहित स्पष्ट दृष्टि भी होनी अनिवार्य है।

सत्याग्रही को ,क्रोध ,अधेर्य , स्वार्थ , तथा बदले की भावना से दूर ही रहना चाहिए अन्यथा उपवास हिंसक हो जाता है दूसरी और भूख हड़ताल दबाव का तरीका है जिसके द्वारा विरोधी को अपनी बात मनवाने के लिए दबाव डाला जाता है गांधी जी ने तो आज के  व्यक्तित्व साधन से सामाजिक साधन बना दिया गांधी जी द्वारा किए गए उपवासों को जनता पर हमेशा ही सकारात्मक परिणाम देखने को मिला है।  

हड़ताल किस प्रकार सहयोगी है।

गांधी जी ने हड़ताल को असहयोग का एक रूप बताया है हड़ताल अर्थ अपने संपूर्ण कामकाज को ठप कर देना होता है इसमें अपनी ही इच्छा होती है इसके अंतर्गत ना केवल अपना निजी कार्य व्यवसाय तथा नौकरी आदि ठप कर देना होता है तथा स्कूल तथा कॉलेज भी जाना भी इसमें सम्मिलित हो जाता है। इसका उद्देश्य केवल जनता तथा सरकार का ध्यान अपनी मांगों की ओर आकर्षित करना है।

गांधी जी का विचार था कि हड़ताल का प्रयोग बार-बार नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि जनता तथा सरकार का इस पर कोई प्रभाव नहीं होगा उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि हड़ताली ऐच्छिक होनी चाहिए कर्मचारियों को काम से रोकने के लिए उन पर दबाव नहीं डाला जाना चाहिए गांधीजी हड़ताल के दुरुपयोग के प्रति भी चिंतित भी रहते थे, इसलिए उन्होंने कहा कि कर्मचारियों को अपने मालिकों से अनुमति प्राप्त करने के पश्चात ही हड़ताल करनी चाहिए उनके अनुसार सामान्य परिस्थितियों में हड़ताल का प्रयोग बिल्कुल भी सही नहीं है।

सामाजिक बहिष्कार के ऊपर गांधी जी के विचार

सत्याग्रह एक अन्य तरीका सामाजिक बहिष्कार भी है यह शांतिपूर्ण तरीके तथा हिंसात्मक दोनों ही प्रकार का हो सकता है यह इसके प्रयोग करने के तरीके पर निर्भर करता है कि आप किस प्रकार इसका उपयोग तथा दुरुपयोग करते हो गांधीजी का मानना था कि सामाजिक जीवन में इस अस्त्र का प्रयोग किसी ना किसी रूप में अवश्य किया जाता है। गांधी जी ने इसका प्रयोग अत्यंत सीमित रूप में करने का सुझाव दिया है इसका प्रयोग केवल उन्हीं लोगों के खिलाफ किया जाना चाहिए जो असहयोग का समर्थन नहीं करते तथा उसकी अवहेलना करते हैं,  अथवा हड़ताल के समय जो हड़ताल में बाधा डालते हैं उनका सामाजिक बहिष्कार करना चाहिए।

धरने द्वारा अपना जनमत उजागर करना

धरना भी का असहयोग का ही मूलभूत रूप माना जाता है तथा गांधीजी ने धरने को भी सत्याग्रह का एक तरीका ही बताया है पर उनका सुझाव है कि इसका प्रयोग अहिंसात्मक कार्यवाही के रूप में ही किया जाना चाहिए इसका प्रयोग भी बहुत ही सूझबूझ कर के  किया जाना चाहिए बाध्यकारी तरीके से बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए।

गांधीजी ने 1920 तथा 1922 के असहयोग आंदोलन तथा 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में शराब, तथा अन्य मादक वस्तुओं, तथा विदेशी, कपड़ों , की दुकानों पर धरने को कांग्रेस का सबसे महत्वपूर्ण कार्य बनाया लेकिन वह रास्ता रोकने के लिए धरने के प्रयोग के पक्ष में नहीं थे। व इसे वैसे हिंसात्मक कार्य मानते थे गांधीजी के अनुसार शांतिपूर्ण धरने का उद्देश्य ऐसे लोगों के विरुद्ध कार्य करते हैं तिरस्कार करना तथा उन्हें शर्म महसूस कराना होता था।

सविनय अवज्ञा की महत्वता

गांधी जी ने सामान्य परिस्थितियों में लोगों को सरकार के आदेशों का पालन करने का सुझाव दिया यदि सरकार जनता की भावनाओं की उपेक्षा करें तथा उन्हें दबाने के लिए अन्यायपूर्ण तरीके अपनाएं तो नागरिकों को चाहिए कि वह ऐसी सरकार के साथ और असहयोग करें। सविनय अवज्ञा असहयोग का एक बहुत ही महत्वपूर्ण रूप है गांधीजी ने इसे सशस्त्र क्रांति का रखते हैं तथा प्रभाव कारी विकल्प माना।